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हम इतने बेवकूफ हैं कि हमने कहानी के किरदारों को भगवान बना दिया

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कल पुरे देश भर में जन्माष्ठमी का त्यौहार मनाया गया.

कुछ मान्यताओं के अनुसार आज के ही दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था और अगर कृष्ण की बात चली हैं तो महभारत और रामायण की कथाओं की बात निकला भी ज़रूरी हैं. क्योकि यही वह दो महाकाव्य थे जिससे भगवान् राम और श्री कृष्ण की कहानी को लोगों तक ऐसे पहुचाया गया कि लोग उन्हें सचमुच भगवान की तरह पूजने लगे.

लेकिन सवाल यह उठता हैं कि क्या वे सारें किरदार केवल किरदार थे या भगवान?

कई सदियों से चली आ रही मान्यताओं के अनुसार रामायण और महाभारत दोनों ऐसी गाथाएं हैं जो अलग अलग युगों में हुई थी. जहाँ रामायण त्रेतायुग की कहानी कही जाती हैं वही महाभारत के बारे मान्यता हैं कि यह द्वापरयुग में घटित हुई थी.

कहते हैं कि रामायण को लोगों तक पहुचाने वाले वाल्मीकि रामायण की पूरी कहानी लिखने के पहले एक लुटेरे थे जो राहगीरों को लुट कर अपने घर का पालन-पोषण करते थे पर एक दिन वाल्मीकि ने नारद मुनि को लूटने का प्रयास किया तो नारद मुनि द्वारा मिली सीख ने उस डाकू को अपने द्वारा की जा रही लूटपाट को छोड़कर सही राह पर चलने के लिए प्रेरित कर दिया और एक डाकू से उन्हें काव्यरचयिता बना डाला. ऐसा ही कुछ वेद व्यास जी साथ भी हुआ जिन्होंने महाभारत की रचना की थी. भगवान् ब्रह्मा की आज्ञा का पालन करते हुए व्यास जी ने इस महाकाव्य को लिखा शुरू किया और लोगों को धर्म और जीवन के विषय में ऐसी सिख दे दी जिसे लोग आज तक अपनाते हैं.

भले ही कुछ वैज्ञानिक तथ्य इस बात की पुष्टि कर दे कि रामायण और महाभारत हिन्दू धर्म में केवल मान्यताओं से कही अधिक सच्ची घटनाएं हैं पर फिर भी कई सवाल शेष रह जाते हैं. हो सकता हैं किसी समय में राम नाम का कोई राजा हुआ भी हो जिसने अपनी प्रजा के लिए बहुत अच्छे काम किये और हमेशा उनके लिए समर्पित रहा.राम के इन्ही  सब गुणों से प्रभावित होकर रामायण की रचना की गयी जिसमे उन्हें भगवान का रूप दे दिया गया. उसी तरह महाभारत में भी श्रीकृष्ण ने जो कुछ भी किया वह धर्म के अनुसार सही था और यही बात महाकव्य लिखने के लिए पर्याप्त सिद्ध हुई और हमें भगवान श्रीकृष्ण मिल गए.

ऐसी कई हिन्दू गाथाओं को पढ़कर एक बात तो बहुत स्पष्ट हैं कि भले ही यह किसी इंसान के जीवन में उसके द्वारा किये गए अतुलनीय कार्य की कहानी रही हो जिन्हें हमने भगवान का दर्जा दे दिया लेकिन इन गाथाओं को लिखने वाले लेखकों की लेखनशैली इतनी प्रभावशाली थी कि एक इंसान को उन्होंने भगवान तुल्य पेश कर दिया और हम सब उन्हें सच-मुच भगवान समझ बैठे और मज़े की बात यह हैं कि आज इन दोनों काव्यों को आधार मान कर ही कई तरह की कहानियां रोज़ लिखी जाती हैं.

आप भारत में बनने वाली किसी भी फिल्म को उठा कर देख लिजियें सभी की स्टोरी लाइन लगभग एक सी होती हैं चाहे वह रामायण से उठाई गयी “अच्छाई की बुराई पर जीत” वाली बात हो या महाभारत के मूल “धर्म की जीत” वाली बात हो.

अक्सर सभी फिल्मे इन्ही दो धारणओं पर आधारित होती हैं.

इस हिसाब से कहा जा सकता हैं कि जिस तरह से वाल्मीकि और वेद व्यास द्वारा रचे गए राम और श्रीकृष्ण के किरदार आज भगवान के रूप में पूजे जा रहे हैं उसी तरह मुंशीप्रेम चंद और सुरेन्द्र मोहन पाठक जैसे लेखकों द्वारा रचे गए कुछ बेहतरीन किरदार आज से कई सदी बाद शायद भगवान की तरह पूजे जायेंगे.

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