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एप्पल के स्थापक स्टीव जाॅब्स को क्यों था भारतीय संस्कृति से लगाव !

स्टीव जॉब्स

स्टीव जॉब्स  –  “हर सफल इंसान की ज़िन्दगी में एक संघर्ष की कहानी ज़रूर होगी । तो संघर्ष से न डरे । यदि आप संघर्ष कर रहें हो तो समझ लीजिये आपकी सफलता दूर नहीं ।”

इन लाइनों को पढकर सिर्फ एक ही इंसान का नाम जैहन में आता है। उनका नाम है स्टीव जॉब्स ।

एक ऐसा नाम जो हर उस इंसान की प्रेरणा है। जिसके पास कामयाबी पाने के लिए हिम्मत के अलावा कुछ नहीं है। फ्रांसिस्को में जन्मे स्टीव जॉब्स को दुनिया के सबसे बेहतरीन फोन एप्पल कंपनी के स्थांपक के तौर पर जाना जाता है । स्टीव जॉब्स ने एप्पल , नेक्स्ट , पीक्सर  की स्थापना की थी। लेकिन ये बहुत हैरानी की बात है  कि दुनिया की नंबर वन कंपनी एप्पल के स्थांपक स्टीव जाॅब्स  ने अपने काॅलेज की पढाई तक पूरी नहीं की ।

दरअसल स्टीव जॉब्स को  एक गरीब कपल ने गोद लिया था । जिन्होंने स्टीव जॉब्स को पढाने की बहुत कोशिश की। लेकिन काॅलेज के दौरान स्टीव को एहसास हुआ कि उनके माता- पिता उनकी पढाई का खर्चा उठाने में समर्थ  नहीं है। इसलिए उन्होंने काॅलेज बीच में ही छोङ दिया ।और कैलीग्राफी की फ्री क्लास जोइन कर ली । इस दौरान स्टीव अपने दोस्त के कमरे पर जमीन पर सोते थे । और कोका कोला की बोतले भेजकर गुजरा करते थे। और हफ्ते में एक दिन सात किलोमीटर चलकर एक गुरुद्वारे में जाकर भरपेट खाना खाते थे।जहां से उनका झुकाव भारतीय की संस्कृति की तरफ हुआ।

बाद में उन्होंने एक कंपनी में काम करना शुरू किया।

लेकिन कुछ वक्त में वो जाॅब भी छोड दी। स्टीव का मन किसी भी चीज मे नही लगता था। और जिस वजह से वो कोई भी काम कई बार  बीच में ही छोङ देते थे । लेकिन फिर उनकी जिंदगी में एक मोङ आया जिसने उनकी जिंदगी को बदलकर रख दिया।

स्टीव जॉब्स का भारतीय संस्कृति की तरफ झुकाव तो था ही साथ उन्हें आध्यात्म में भी काफी रुचि थी। स्टीव जॉब्स सन 1975 में भारत में देवभूमि उत्तराखंड के  नैनीताल आए थे । और यहाँ आकर बाबा नीम किरौली बाबा के आश्रम में ठहरे थे। भारत की सैर के बाद स्टीव जॉब्स एक नई ऊर्जा के साथ अपने देश वापस लौटे ।

स्टीव जॉब्स ने अपने देश लौटकर अपने दोस्त के साथ मिलकर एक कंप्यूटर बनाया जिसका नाम था ‘ एप्पल ‘ और ये था वो वक्त जंहा से स्टीव जॉब्स की कामयाबी की शुरुआत हुई ।

हालांकि इसके बाद भी स्टीव जॉब्स ने कुछ वक्त के लिए बुरा वक्त और देखा था।जब उन्हें अपनी ही कंपनी एप्पल से ही निकाल दिया गया था लेकिन इस बार स्टीव जानते थे उन्हें क्या करना है। उन्होंने दोबारा से शुरुआत की ओर ‘एप्पल’ को खरीद उसके सीईओ बन गए । स्टीव की कामयाबी में विज्ञान और आध्यात्म दोनो का ही  योगदान था। यही कारण था जब उनके दोस्त और फेसबुक के फाउंडर माक्स जुगलर्बग को जब फेसबुक से घाटा हो रहा था तब उन्होंने माक्स जुगलर्बग को इंडिया में किरौली बाबा के आश्रम कैंची धाम जाने का सुझाव दिया । वहां  से लौटने के बाद जुगलर्बग के विचारों को नई सोच मिली और उसी का परिणाम है कि आज फेसबुक  पर युजर्स की संख्या 2 बिलियन पहुंच चुकी है।

स्टीव जॉब्स विज्ञान में आध्यात्म से कही ज्यादा रुचि रखते थे । स्टीव जॉब्स ने अपनी किताब  “मैं स्टीव : मेरी कहानी मेरी जुबानी”  में कहा था कि  “दुनिया को बदलने के लिए थॉमस एडिसन ने कार्ल मार्क्स और किरौली बाबा से कही ज्यादा प्रयास किए थे। “

हालांकि वो इस बात को समझते थे कि मनुष्य को अपनी जिंदगी में राह पाने के लिए आध्यात्म और विज्ञान दोनो ही जरुरी है।