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हनुमान जी से नहीं, रावण श्री राम जी के इस दूत से बहुत प्रभावित हुआ था, तभी तो…

Angad Challenges Ravana In His Court

रामायण मात्र कोई एक धार्मिक पुस्तक नहीं है.

रामायण में भगवान श्री राम जी से हमें अच्छे गुण सीखने को मिलते हैं. लेकिन एक सच यह भी है कि रामायण के हर पात्र से हम कुछ न कुछ अच्छी बातें सीख सकते हैं.

इसी तरह से जब बात आती है कि भगवान राम जी का प्रिय दूत बनकर कौन लंका गया था?

तो हम सभी हनुमान जी के नाम पर आकर रूक जाते हैं. बेशक यह बात सच है कि माता सीता का पता तो हनुमान जी ने ही लगाया था लेकिन हनुमान जी एक दूत के रूप में रावण के पास नहीं गये थे.

और ना ही रावण हनुमान जी से बहुत अधिक प्रभावित हुआ था. भगवान राम जब चिंतित थे कि अब रावण के पास किसको दूत बनाकर भेजा जाए तो हमारी बातों को सही से वहां रख सके तब राम जी को अंगद का नाम सुझाया गया था. बाली पुत्र अंगद रावण के पास अपने भगवान का सन्देश लेकर गया था.

क्या हुआ जब अंगद लंका पहुँचे

रावण के पास जाकर अंगद ने राम की वीरता और शक्ति का बखान भरी सभा में किया. इसके बाद इन्होनें रावण को चुनौती भी दे डाली कि अगर लंका कोई वीर हो तो मेरे पांव को जमीन से जो भी उठा दिखा दे. रावण के बड़े-बड़े और बलशाली वीर अंगद के पांव को जमीन से उठाने में असफल रहे थे.

जब यह काम किसे से नही हो रह था तो अंत में रावण खुद अंगद के पांव उठाने आया. अंगद ने कहा कि मेरे पांव क्यों पकड़ते हो पकड़ना है तो मेरे स्वामी राम के चरण पकड़ लो, वह दयालु और करुणानिधि हैं। उनकी शरण में जाओ तो प्राण बच जाएंगे अन्यथा युद्ध में बंधु बांधवों समेत मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे.

रावण प्रभावित हो गया था अंगद से…

सबसे पहले जब रावण अंगद को वानर-वानर बुला रहा था तो तब अंगद ने अपना परिचय कराया, जिसमें उन्होंने अपने पिता का नाम जब बाली बताया तभी रावण का अहंकार चूर-चूर हो चुका था.

लेकिन सभा में जब अंगद ने राम जी का शान्ति प्रस्ताव जिस तरह से रखा था उसे देखकर ना सिर्फ रावण बल्कि सभा में मौजूद सभी लोग प्रभावित थे.

जब रावण काँप गया था अंगद की आवाज सुनकर…

रावण जब राम जी की महिमा सुनकर दुखी हो गया था तो वह अंगद को कहता है – “अरे दुष्ट बंदर अब तू मरना ही चाहता है! इसी कारण छोटे मुंह से बड़ी बात कह रहा है. तू जिसके बल पर ये बातें मुझे बोल रहा है. उसे गुणहीन और मानहीन समझकर पिता ने वनवास दे दिया. उसे रात-दिन मेरा डर बना रहता है. जिनके बल का तुझे गर्व है, ऐसे अनेकों मनुष्यों को तो राक्षस रात दिन खाया करते हैं.”

यह सुनकर अंगद को गुस्सा आया वह जोर से गरज कर बोला तब रावण गिरते-गिरते संभल कर उठा था.

वापस आकर जब अंगद ने पूरा विवरण भगवान राम को सुनाया तो राम जी अति प्रसन्न होकर अंगद को गले लगा लेते हैं.