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भारत ने अमेरिका को दिया संदेश अब हल्के में मत लेना

भारत की टेक्नोलॉजी

भारत की टेक्नोलॉजी – बात आज से करीब 25 साल पुरानी है.

उस वक्त भारत और अमेरिका के संबंध ऐसे नहीं थे ऐसे की आज हैं.

वो वह दौर था जब अमेरिका भारत के आगें बढ़ने की हर राह में रोड़ा अटका था. तब भारत ने अमेरिका के गाल पर ऐसा करारा तमाचा मारा था कि अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया देखती रह गई थी.

भारत ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया जिसको अमेरिका सपने में भी नहीं सोच सकता था. उसके बाद भारत ने अमेरिका को कह दिया कि अब हल्के में मत लेना हमें. गए वो दिन जब भारत को गेंहू भी अमेरिका से खरीदना पड़ता था.

आज भारत की टेक्नोलॉजी की वजह से भारत अंतरिक्ष की दुनिया में ऐसी छंलाग लगा चुका है, जिसके बाद आने वाले दिनों में उसको पकड़ना दुनिया के लिए मुश्किल होगा. दरअसल,वर्ष 1992 में स्पेस में भारत की रफ्तार पर लगाम लगाने के लिए अमेरिका ने रूस पर दवाब डालकर भारत को क्रायोजेनिक तकनीक ने देने के लिए इतना दवाब दिया कि रूस अपने वादे से पीछे हट गया.

उस वक्त सोवियत संघ टूट चुका था और रूस की भी हालत अच्छी नहीं थी. यही कारण था कि वो अमेरिका के दवाब में झुक गया और को क्रायोजेनिक तकनीक का हस्तांतरण नहीं किया.

लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने इसे अमेरिका की चुनौती के रूप में लिया और क्रायोजेनिक तकनीक का इजाद किया. ज्ञात हो कि अमेरिका की इन सभी कोशिशों का मकसद भारत को मिसाइल विकसित करने की तकनीक हासिल करने से रोकना था.

उसके बाद तो समय का पहिया ऐसा घुमा कि जो अमेरिका पहले भारत के खिलाफ आंखें तरेरता था उसकी नजर अब झुक चुकी हुई हैं. भारत की टेक्नोलॉजी का कमाल है कि अमेरिका अब अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत के साथ मिलकर काम करना चाहता है. हाल ही में अमेरिका ने करीब 1.5 बिलियन डॉलर के निसार प्रोजेक्ट पर इसरो के साथ मिलकर आगे बढ़ने का फैसला किया है.

स्पेस मामलों के जानकारों का कहना है कि मौजूदा समय में भारत की ताकत को कोई नजरंदाज नहीं कर सकता है. हाल ही में इससे पर कम कीमत में सेटेलाइट के सफल प्रक्षेपण के बाद अमेरिका को ये अहसास होने लगा है कि आने वाले समय में अब उसे रूस से ज्यादा चुनौती भारत से मिलेगी.

यही कारण है कि अमेरिका का स्पेस संस्था नासा ने भारत की स्पेस संस्था इसरो से एल बैंड और एस बैंड से लैस एसएआर उपग्रह बनाने के लिए हाथ मिलाया. नासा के मुताबिक इसरो से बेहतरीन इस परियोजना में और कोई बेहतर साझीदार नहीं हो सकता है.

दरअसल, भारतीय मंगलयान ने इसरो को दुनिया के नक्शे पर चमका दिया. मंगल तक पहुंचने में पहले प्रयास में सफल रहने वाला भारत दुनिया का पहला देश है. जबकि अमेरिका, रूस और यूरोपीय स्पेस एजेंसियों को कई प्रयासों के बाद मंगल ग्रह पहुंचने में सफलता मिली.

इसके अलावा चंद्रयान की सफलता और जीएसएलवी मार्क 2 का सफल प्रक्षेपण भी भारत के लिए बड़ी कामयाबी थी, क्योंकि इसमें भारत ने अपने ही देश में बनाया हुआ क्रायोजेनिक इंजन लगाया था. इसके बाद भारत को सेटेलाइट लॉन्च करने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ा.

आज अमेरिका के जीपीएस सिस्टम के समान भारत का खुद का नेविगेशन सिस्टम भी है.