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जानियें क्या होता हैं ” पर्युषण पर्व ”?

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भगवान् महावीर द्वारा चलाया गया जैन धर्म अपने अहिंसा के विचार के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता हैं.

लेकिन अभी पर्युषण पर्व के महीनों में कुछ दिनों से महराष्ट्र में चल रहे हैं मीट बैन के मामले ने तूल पकड़ लिया हैं.

जहाँ सरकार ने जैन धर्म के मानने वाले लोगों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए इस पुरे महीने मांस न खाने की बात को मद्देनज़र रख कर पुरे राज्य में मीट बैन कर दिया हैं, वही इस बात का विरोध करते हुए शिवसेना ने जैन धर्म के धार्मिक स्थलों के आसपास ही मांस बेच कर सरकार की इस सोच का विरोध किया और कहा कि “किसी एक धर्म के तुष्टिकरण के लिए बाकि धर्म के लोगों को तकलीफ में डालना कहा की अक्लमंदी हैं”.

खैर वह मामला जैसा भी हो लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस “पर्युषणपर्व” के नाम पर इतना हंगामा मचा हैं वह असल में हैं क्या?

आईएं हम बताते हैं जैन धर्म में मनाये जाने वाले पर्युषण पर्व के बारे में.

चातुर्मास पर्व यानि चार महीने तक चलने वाला पर्व. जैन धर्म में यह चार महीने अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं और इन चार महीनों में भी पर्युषण पर्व का समय सबसे अहम् होता हैं. जैन धर्म में पर्युषण महापर्व विशुद्ध रूप से आध्यात्मिक पर्व हैं, जो हर वर्ष वर्षा ऋतू के समय आता हैं. हिन्दू पंचांग के अनुसार भादो मास में पड़ने वाला यह पर्व, जैन धर्म के अनुयाइयों के लिए आत्मा से परमात्मा तक पहुचने का पर्व होता हैं.

इस साल भी जैन चातुर्मास का यह पर्व 30 जुलाई को आरम्भ हुआ हैं और नवम्बर की 24 तारीख को पूरा होगा.जैन धर्म पूरी तरह से अहिंसा पर आधारित हैं. इस धर्म की मान्यताओं के अनुसार किसी भी जीव के साथ किसी भी तरह की हिंसा को पुर्णतः अनुचित कहा गया हैं और अपनी इसी विचारधारा को ध्यान में रखकर जैन धर्म में पर्युषण पर्व की शुरुआत की गयी थी.

जैन धर्म के संस्थापक भगवान् महावीर के अनुसार अपने आसपास की धरती में बारिश का मौसम ही एक ऐसा समय होता हैं जब सबसे अधिक कीड़े मकोड़े या इसी तरह के कई अन्य जीव वातावरण में सबसे अधिक सक्रिय होते हैं. इन प्राणियों में कई ऐसे जीव भी होते हैं जो खुली आँखों से हमें दिखाई भी नही देते हैं और ऐसे में यदि मनुष्य जाति अधिक चलना-फिरना करे तो  इस तरह के जीवों को नुकसान पहुचता हैं जो जैन धर्म की विचारधारा के विपरीत एक तरह की हिंसा मानी जाती हैं.

अपनी इसी विचार को ध्यान में रख कर भगवान महावीर ने सभी लोगों से यहीं कहाँ कि इन चार महीनो में हम सब को एक ही जगह रह कर धर्म कल्याण के लिय कार्य करना चाहिए. तब से महावीर की इन बातों को जैन साधू सिरोधार्य कर के हर वर्ष किसी एक स्थान का चयन कर ठहर जाते हैं और वही से लोगों को धर्म और कल्याण की बाते समझाते हैं.

इस पर्युषण पर्व का मुख्य उद्देश्य यह होता हैं कि जैन धर्म में उल्लेखित अहिंसा का विचार पूरी दुनिया में जाए और जितना संभव हो सके मनुष्य जाति दुनिया में व्याप्त बाकि प्राणियों की मृत्यु का कारण न बने.