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बुआ और दोस्त के बीच बुरे फंसे अखिलेश, किसे करें समर्थन समझ नहीं पा रहें!

महागठबंधन

महागठबंधन – गठबंधन का राजनीति कितनी मुश्किल होती है, ये यूपीए और एनडीए सरकार से बेहतर भला कौन जान सकता है.

हर पल किसी न किसी पार्टी के नेता का मुंह फूला ही रहता था और सबको खुश करने के चक्कर में देश की जनता साइडलाइन हो जाती थी. बरसों बाद मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और इस सरकार ने अपने दम पर सारे फैसले लिए, बिना किसी के नाराज होने के डर के.

मगर क्या अगले लोकसभा चुनाव में क्या कोई पार्टी फिर से पूर्ण बहुमत के साथ आएगी? कहना मुश्किल है.

वैसे अखिलेश यादव तो अभी से महागठबंधन की कोशिशों में जुट गए हैं और एक ओर यूपी में जहां मायावती को पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में आगे किया जा रहा है, वहीं कुछ कांग्रेसी राहुल गांधी को पीएम बनाना चाहते हैं और अखिलेश दोनों की पार्टियों से अपनी दोस्ती बनाए रखना चाहते हैं.

अगले चुनाव तक वो बुआ मायावती को नाराज़ नहीं करना चाहते. ऐसे में जब भोपाल दौरे पर गए समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से पत्रकारों ने पूछा कि प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार के रूप में वह राहुल गांधी या मायावती में से किसे समर्थन देंगे तो अखिलेश ने सीधा नहीं, बल्कि गोलमोल जवाब देकर इस सवाल को टालने की कोशिश की.

सवाल के जवाब में अखिलेश ने कहा, ‘यूपी के अच्‍छे भविष्‍य को देखिए. जो कोई भी प्रधानमंत्री बनेगा, वह यूपी से होगा.’ उन्‍होंने यह भी कहा कि देश चाहता है कि एक नया प्रधानमंत्री मिले क्‍योंकि लोग वर्तमान सरकार से बहुत नाराज हैं. मध्‍य प्रदेश चुनाव से ठीक पहले दो दिवसीय दौरे पर पहुंचे अखिलेश ने कहा कि महागठबंधन के लिए उनकी पार्टी ‘कई दलों के साथ संपर्क में है.’

दरअसल, राजनीति में कब किसका पलड़ा भारी पड़ जाए कहा नहीं जा सकता, इसलिए सभी पार्टियों से दोस्ती बनाकर रखने में ही समझादारी है, क्योंकि जोड़तोड़ की सरकार बनाने में यही दोस्त काम आते हैं. ऐसे में अखिलेश बुआ मायावती और दोस्त राहुल गांधी दोनों के खिलाफ कुछ भी ऐसा नहीं बोलना चाहते जिससे भविष्य में उनके साथ गंठबंधन मुश्किल हो जाए. अखिलेश वैसे तो पिता मुलायम सिंह को पीएम बनाना चाहते थे, मगर गठबंधन की राजनीति में किसी एक की चाहत की कोई वैल्यू नहीं होती.

महागठबंधन – अब देखना ये है कि 2019 में मोदी की हराने के लिए एकजुट हुए सपा, बसपा क्या नया गुल खिलाते हैं. क्या वो मोदी जी हो हरा पाते हैं या एक बार फिर मोदी लहर में उनका सूपड़ा साफ हो जाता है?