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तोपखाने की कमांडर थी यह स्त्री! इस एक अकेली स्त्री ने तबाह कर दी थी अंग्रेजों की आधी सेना !

महारानी लक्ष्मीबाई

महारानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना में एक से एक महिला योधाओं को जगह दी थी.

जब अंग्रेज पहले यह बात सुनते थे तो वह सभी हँसते थे क्योकि उन्होंने महिला योधाओं की कहानीयों को बहुत ही कम सुना था. सबसे बड़े बात यह थी कि अंग्रेजों ने भारतीय महिलाओं के बारे में यही सुना था कि वह घर के काम ही संभालती हैं.

लेकिन जब उनका सामना वीर लक्ष्मी बाई से हुआ था तो उनके होश ही उड़ गये थे.

जिस तरह से महारानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों को पानी पिलाया, वह शायद ही अंग्रेज कभी भूल सकते हैं. लेकिन लक्ष्मीबाई के इतिहास को अगर आप पढ़ते हैं तो वहां इनकी कई महिला साथियों का भी नाम आता है जिन्हें पढ़ा जाना अभी बाकी है.

तो अगर आप लक्ष्मी बाई जी के साथ न्याय करना चाहते हैं तब आपको इनकी महिला साथियों के इतिहास पर भी नजर डालनी होगी. इन्होनें युद्ध भूमि में अपने प्राण दे दिए किन्तु अंग्रेजी सैनिकों को भारत माता पर जीते जी तो कब्जा नहीं करने दिया था.

ऐसा ही एक नाम है जूही, अंग्रेज समझ नहीं पा रहे थे कि अब क्या करें

‘इला ने देणी आपणी, हालरिये हलुराय;
पूत सिखावे पालणै, मरण बड़ाई माय,’

(क्षत्राणियाँ – माताएँ अपने पुत्रों को पालने में सुलाकर लोरी में ही वीरता का महत्व समझाती हैं और अपनी मातृभूमि कभी भी दुश्मनों को नहीं देने के लिए कहती हैं तथा वीर मृत्यु की महिमा दर्शाती हैं.)

यह पंक्तियाँ लक्ष्मी बाई की महिला सेना की कमांडर जूही पर पूरी तरह से सही साबित होती है. कई इतिहासकारों ने लिखा है कि जूही की माता जी हमेशा अपनी बेटी को वीरतापूर्ण कहानियाँ सुनाती थीं. इसका असर यह हुआ था कि जूही देश की खातिर सब कुछ त्यागकर, महारानी लक्ष्मीबाई की सेना में शामिल हो गयी थी.

इस स्त्री ने अंत तक महारानी लक्ष्मी बाई का साथ दिया था.

अंग्रेजों ने चारों तरफ से लक्ष्मीबाई को घेर लिया था और तब तोपखाने की कमांडर जूही ही थीं. अंग्रेजों को तोपखानों से कोई डर नहीं लग रहा था तभी वीर जूही ने अकेले ही सबकुछ संभाल लिया और चारों दिशाओं से गोले दागने शुरू कर दिए. ऐसा बोला जाता है कि मिनटों में ही अंग्रेजी सेना के होश खराब हो गये थे कि यह कौन हमला कर रहा है.

आखिरी युद्ध में तबाह कर दी थी अंग्रेजों की आधी सेना

वैसे इतिहास में बहुत कम जानकारी के अभाव में इस वीर योद्धा के बारे में अधिक लिखना मुश्किल होता है.

किन्तु लेखक नरेन्द्र कुमार एक सभा में बताते हैं कि जूही जी हमेशा लक्ष्मीबाई के साथ ही रहती थीं. किन्तु जब अंग्रेज लक्ष्मीबाई को चारों तरफ से घेर चुके थे तब भी वह अगर चाहती तो लक्ष्मीबाई के साथ आराम से भाग सकती थीं. किन्तु उन्होंने दूसरों की खातिर तोपखाना सँभालने का फैसला लिया. जूही जानती थी कि उनसे बेहतर कोई भी इस समय तोपखाना नहीं संभाल सकता है. इसलिए उन्होंने इसे संभाला.

तब वीर स्त्री जूही ने इस तरह से गोलों की बारिश अंग्रेजों पर की थी जैसे कि आसमान से गोले बरस रहे हों. इसी वजह से महारानी लक्ष्मीबाई वहां से भागने में सफल रही थीं. किन्तु इस लड़ाई में वीर योद्धा जूही को अपने प्राणों की बलि देनी पड़ी थी.

अंग्रेजों ने जब देखा कि यह लड़ाई एक स्त्री लड़ रही थी जो तोपखाने की कमांडर थी तो वह काफी हैरान हुए थे और अंग्रेज कमांडर ह्यूरोज ने झुककर इतनी महान योद्धा को नमन भी किया था.