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26/11 मुंबई हमले के ज़ख्म: हम आतंकवादियों को मारते है लेकिन सिर्फ फिल्मों में

26-11 mumbai attack

ना सिर्फ मुंबई बल्कि हर एक भारतीय के ज़ेहन में आज भी जिंदा है 7 साल पहले के वो खौफनाक मंज़र जिनके बारे में सोचकर आज भी रूह काँप जाती है.

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26/11 मुंबई  आतंकी हमला अपने आप में अनोखा था. आतंकियों ने बेदर्दी से अलग अलग जगह सैंकड़ों मासूमों को मौत के घाट उतार दिया.

26/11 मुंबई का हमला हमारे देश के चेहरे पर एक तमाचा था. आतंकियों ने खुलेआम दिखा दिया कि हम तो तुम्हे मारेंगे जो कर सकते हो कर लो.

उन्होंने खुलेआम मारा भी, लेकिन हमने क्या किया? एक हजारों पन्नों की चार्जशीट और अनगिनत समितियां बनाकर कर दी खानापूर्ति.

तरह तरह की घोषणाएं हुई, कानून कड़े करने की बात हुयी,करारा जवाब देने की भी बात हुई लेकिन असल में सिर्फ बातें ही हुई और कुछ नहीं हुआ.

20-21 साल के कसाब को पकड़ा उसे पाला पोसा और फिर चुनावी फायदा लेने के लिए फांसी पर चढ़ा दिया और प्रचारित किया कि मुंबई हमले के ज़िम्मेदारों को सजा दे दी गयी.

कसाब की फांसी के समय जब हमारे भारत के रहनुमा खुद की पीठ ठोकने में लगे हुए थे तब शायद वहां सरहद पार पाकिस्तान में बैठे लखवी,हाफ़िज़ सैईद और हेडली हमारे देश पर हंस रहे थे.

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9/11 को अमेरिका में सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ था. क्या आपको याद है उसके बाद वहां कोई और आतंकी घटना हुई हो? 

उन्होंने ना सिर्फ घटना के जिम्मेदार अल-कायदा की कमर तोड़ी अपितु उसके सरगना ओसामा बिन लादेन जैसे दुर्दांत आतंकी को भी मौत के घाट उतार दिया. क्या आप सोच सकते है कि जनता में इसका कितना सकारात्मक सन्देश गया होगा.

अपने देश के प्रति उनका विश्वास बढ़ा ही होगा. उन्हें अहसास दिलाया गया कि इस देश पर हमला करने वाले को छोड़ा नहीं जाएगा.

अब ज़रा सोचिये हमारे यहाँ क्या हुआ 26/11 के बाद घटिया राजनीति, धार्मिक तुष्टिकरण, तरह तरह की बयानबाजी और ऐसे ही तमाम नाटक.

मुंबई हमले के पीछे लश्कर का हाथ था और वो लोग जो इस हमले के मास्टरमाइंड थे तब से लेकर आज तक ना सिर्फ खुले घूम रहे है बल्कि मौके बेमौके हमारे देश के खिलाफ कभी जुबान से तो कभी हथियारों से आग उगलते ही रहते है.

26/11 मुंबई हमले ने एक और काम किया था वो ये था कि मीडिया का एक ऐसा चेहरा दिखाया जो हमने पहले कभी नहीं देखा था. मीडिया ने एक एक पल की खबर तो दी पर ज्यादा से ज्यादा TRP कमाने के लिए उन्होंने वो सब भी दिखाया जिसने आतंकियों की मदद भी की.

कहाँ से सैनिक जायेंगे, हमले का जवाब देने का क्या प्लान है ये सब कुछ मीडिया ने इतनी जोर जोर से सुनाया और दिखाया कि पाकिस्तान में बैठे आतंकी सरगना भी मुस्कुराने लगे होंगे उनकी इस बेवकूफी पर.

करीब 300 लोगों की मौत हुयी, मुंबई पर ऐसा डर का साया 93 ब्लास्ट के समय आया था.

7 साल का समय गुजर चुका है, सरकारें भी बदल चुकी है लेकिन आज तक 26/11 के हमले का ना कोई ठोस जवाब दिया गया है ना कोई कार्यवाही की गयी है ना उस हमले के जिम्मेदार लोगों को पकड़ा या मारा गया है.

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130 करोड़ लोगों के देश पर इस तरह के हमले बार बार होते है और फिर कड़ी कार्यवाही करेंगे जैसी बकवास होती है और फिर सब कुछ भुला दिया जाता है.

कितना आसान है ना छत्रपतिशिवाजी टर्मिनस से उस दिन बहे मासूमों के खून को धोना, ताज होटल में पड़े गोलियों से छलनी शरीरों को भूलना और कितना आसान है न लेओपोर्ड कैफ़े, कामा अस्पताल और नरीमन पॉइंट में गूंजती हुई ह्रदय विदारक चीखों को भूलना.

ज़रा पूछिए उनसे जिनके परिवार खत्म हो गए इस जुनूनी हमले में, ज़रा पूछिए उन पुलिस वालों के परिवारों से जिनके बेटे,पिता शहीद हुए उन लोगों को बचाने की कोशिश में जो आज तक उनकी मौत पर राजनीति करने से बाज़ नहीं आते.

7 साल बाद अब डेविड हेडली को मुंबई हमलों में शामिल होने का चार्ज लगाकर एक 4000 पन्नों की चार्जशीट  दाखिल की है. जी हाँ हमले के इतने सालों के बाद. अगर अब भी आपको उम्मीद है कि 26/11 हमले के मास्टरमाइंड लखवी, हाफिज और हेअद्ली कभी भारत लाये जायेंगे या भारत उनको मौत के घाट उतार पायेगा तो ये सिर्फ आपका सपना ही है.

कुछ नहीं कर सकते हम सिवाय इसके की आतंकियों को बेबी, अ वेडनेसडे या फैंटम जैसी फिल्मों में मरता हुआ देखें और देशभक्ति में पागल हो तालियाँ पीटे.

26/11 मुंबई  हमलों में मरे मासूमों को सच्ची श्रद्धांजलि तभी मिलेगी जब हमला करवाने वाले दोजख में जायेंगे और हमारे देश की सुरक्षा व्यवस्था इतनी कड़ी होगी कि अगली बार ऐसा हमला करने की सोचने से भी उन आतंकवादियों की रूह काँप जायेगी.