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बाबरी मस्जिद और राम मंदिर: 23 साल बाद भी धधक रही है मज़हबी आग

अयोध्या राम जन्मभूमि….. या बाबरी मस्जिद अयोध्या…

6 दिसम्बर 1992 कारसेवकों की भीड़ अयोध्या में घुस जाती है. हर तरफ भगवा झंडे लहराते उन्मादी कार सेवक पुलिस बैरिकेड्स तोड़कर बाबरी के गुम्बद तक पहुँच जाती है.

हर तरफ शोर ही शोर है और है नारे “सौगंध राम की खाते है मंदिर वहीँ बनायेंगे “ या फिर ” जयकारा वीर बजरंगी हर हर महादेव “.

कहने को तो पुलिस है वहां पर लाचार.. अचानक कहीं से आवाज आती है गिरा दो… और इसी के साथ ईंट दर ईंट बाबरी मस्जिद गिरा दी जाती है और गुम्बद पर फहरा दिया जाता है भगवा परचम.

जय श्री राम की कर्णभेदी आवाज़ से पूरा आकाश दहल उठता है. ऐसा उन्माद के देखने वाले डर जाए.

और फिर

पुलिस की कार्यवाही शुरू होती है लाठियां, गोलियां और गिरने लगते है कारसेवकों के शरीर. ना जाने कौनसा ऐसा उन्माद था जो 18-19 साल के किशोरों से लेकर 60-70 साल के बूढ़ों को अयोध्या तक खींच लाया था.

लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा, बीजेपी और संघ के नेताओं को अयोध्या में घुसने से रोकना क्या कुछ नहीं किया था तत्कालीन सरकारों ने लेकिन फिर भी बाबरी गिरा दी गयी.

बाबरी मस्जिद का गिरना 90 के दशक की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक था.

कहा तो ये भी जाता रहा है कि तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार और केंद्र सरकार ने जानबूझ कर कारसेवकों की भीड़ को नज़रंदाज़ किया.

कुछ सूत्र तो ये भी कहते है कि 6 दिसम्बर 1992 को हुई घटना किसी भीड़ का उन्माद नहीं था वो एक सोची समझी साजिश थी. ऐसी साजिश जिसकी तैयारी महीनों से चल रही थी.

बाबरी मस्जिद तो गिरा दी गयी, लेकिन राम मंदिर आज 23 साल बाद भी नहीं बना है.

बाबरी मस्जिद गिरने के बाद भारत में धर्म के आधार पर जैसा ध्रुवीकरण हुआ वैसा पहले कभी नहीं हुआ था. नफरत का वो घाव ऐसा था कि आज भी वो नासूर बनकर देश को परेशान कर रहा है. हिन्दू मुस्लिम मुद्दे को बाबरी मस्जिद ने जो हवा दी थी आज वो तूफ़ान बनकर खड़ा है.

बाबरी मस्जिद गिरने के बाद पूरा देश जल उठा. जगह जगह दंगे भड़क उठे. सांप्रदायिक सौहार्द तार तार हो गया. सैंकड़ों लोग दंगों में मारे गए औएर ना जाने कितने ही घायल हुए.

बाबरी मस्जिद की घटना और बाद में भडके दंगों ने ही देश की व्यापारिक राजधानी मुंबई में हुए सबसे बड़े हमले की नींव रखी. बाबरी मस्जिद का बदला लेने के लिए आतंकवादियों, पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था ISI और माफिया डॉन दाऊद इब्राहीम ने मिलकर मुंबई बम धमाकों की साजिश रची.

सन 1993 मार्च में पूरी मुंबई बम के धमाकों से दहल गयी. दबी जुबान में कहा जा रहा था कि बाबरी का बदला ले लिया गया है. इन धमाकों ने मुंबई को हिलाकर रख दिया था. मुंबई के सबसे महत्वपूर्ण हिस्सों में धमाके हुए. 250 से भी ज्यादा लोग मारे गए, घायल होने वालों की तो संख्या का भी नहीं पता था.

पहले बाबरी फिर दंगे और उसके बाद धमाके…. एक तरह से भारत की आत्मा लहुलुहान हो चुकी थी इन सब घटनाओं के बाद.

ये शुक्र की बात है कि उस पागलपन के बाद शांति ही रही लेकिन ये शांति एक बारूद के ढेर पर टिकी है. कोर्ट में केस चला, ASI के सर्वे हुए, जांच समितियां बनी, लोगों को दोषी ठहराया गया, कुछ को सजा भी हुई.

कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए राम जन्मभूमि विवादित क्षेत्र को तीन भागों में बाँटते हुए वक्फ बोर्ड और राम मंदिर समिति को बाँट दिया.

होना ये चाहिए था कि दोनों कोर्ट के फैसले पर सहमत होकर बरसों से चले आ रहे विवाद को खत्म कर देते. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ दोनों ही तरफ के लोग अपनी अपनी बातों पर अड़े रहे और नतीजा वही ढाक के तीन पात.

92 के बाद से देश में ऐसा माहौल बन गया कि बीजेपी को हिंदूवादी पार्टी का दर्जा मिल गया और कांग्रेस को मुसलमान समर्थक.

दोनों ही पार्टियाँ अपने अपने वोटबैंक को इस मुद्दे के नाम से मज़बूत करती आ रही है.

92 के बाद से कितनी ही सरकारें बदल चुकी है पर हर राजनैतिक पार्टी अपनी अपनी रोटी इस मुद्दे के तवे पर सकती है. कुछ मंदिर के समर्थन से तो कुछ विरोध से लेकिन कोई इस समस्या का समाधान नहीं चाहता. अगर समाधान हो गया तो एक अच्छा खासा चुनावी मुद्दा जो हाथ से निकल जायेगा.

हर साल 6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद के गिरने के दिन देश में एक अजीब स तनाव रहता है, डर लगता है कि ना जाने कब क्या हो जाए.

कितना अजीब है ना ख़ुदा और राम के नाम पर इंसानों का खून बहाना.

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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