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लगान के 14 साल – क्या आप जानते है पर्दे के पीछे की ये 7 बातें

14 years of lagaan

लगान 2001 में आई एक महान फिल्म. लेखक निर्माता निर्देशक आशुतोष गोवारिकर का एक असम्भव सा सपना.

वो सपना जिसे ना जाने कितने ही लोगों ने ये कह कर नकार दिया कि ये फिल्म बन ही नहीं सकती और अगर बन भी गयी तो बनाने वाला बर्बाद हो जायेगा क्योंकि ऐसी फिल्मे भारत में कोई नहीं देखता.

हर तरफ से हताश होकर आशुतोष मिले आमिर से, आमिर ने भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया, शायद उन्हें भी डर था. बाद में आशुतोष ने लगान की स्क्रिप्ट आमिर को सुनाई और कहानी सुनते सुनते ही आमिर पहुँच गए चंपारण में.

कहानी सुनकर इतने उत्साहित हुए की फिल्म का प्रोड्यूसर बनने को तैयार हो गए.

लगान जो आज हिंदी सिनेमा की किवदंती बन चुकी है. साहस, दृढ़ निश्चय और जूनून की महागाथा. 14 साल बाद भी लगान वैसी ही लगती है जैसी रिलीज़ के वक्त देखने पर लगी थी. एक सच्ची सदाबहार फिल्म.

आइये जानते है लगान के बारे में कुछ अनोखी बातें

  • लगान के लिए आशुतोष ने शाहरुख़ सहित कई बड़े कलाकारों से बात की थी पर सबने मना कर दिया.
  • लगान के लिए अनुबंधित अंग्रेज़ कलाकारों के लिए शर्त थी की उन्हें क्रिकेट खेलना आना चाहिए. शायद यही वजह थी की फिल्म में भले ही वो मैच हार गए थे पर सेट पर खेले गए दोस्ताना मैच में अंग्रेज़ कलाकारों ने भारतीय कलाकारों को हरा दिया था.
  • नंदिता दास और रानी मुख़र्जी, प्रीटी झिंटा को गौरी के रोल के लिए अप्रोच किया गया था पर अंत में रोल मिला नवोदित ग्रेसी सिंह को.
  • लगान पिछले 40 सालों में सिंक साउंड का उपयोग करने वाली पहली हिंदी फिल्म थी.
  • सरदार के रोल के लिए मुकेश ऋषि को लिया जाना था पर बाद में ये रोल प्रदीप रावत को मिला, प्रदीप ने लगान के बाद गजनी में भी आमिर के साथ काम किया.
  • सनी देओल और आमिर कहाँ एक दुसरे के लिए बहुत भाग्यशाली रहे है. दोनों की जितनी भी फ़िल्में एक साथ आई सब की सब बहुत सफल रही. दिल और घायल , घातक और राजा हिन्दुस्तानी और लगान के साथ ही रिलीज़ हुयी ग़दर.
  • अनगिनत पुरूस्कार जीतने वाली लगान, ऑस्कर में विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म श्रेणी में नामांकित हुयी पर अंत में “नो मैन्स लैंड ” से पराजित हो गयी.

लगान कहानी है जुझारूपन की, अदम्य साहस की, संघर्ष की .पर्दे के सामने भी और पर्दे के पीछे भी. हिंदी फिल्म के इतिहास में लगान जैसी फ़िल्में कभी कभी ही बनती है. भारतीय सिनेमा हमेशा ऋणी रहेगा आशुतोष गोवारिकर और आमिर खान का जिन्होंने मिलकर ये अद्भुत फिल्म रची. एक ऐसी फिल्म जिससे भारत की मिटटी की खुशबु आती है.