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घर बैठे दर्शन करिए भगवान विष्णु ज़ी के 10 प्रमुख अवतारों के!

भगवान विष्णु

ऐसा कहा जाता है कि जब जब पृथ्वी पर कोई संकट आता है तो भगवान अवतार लेकर उस संकट को दूर करते है.

भगवान शिव और भगवान विष्णु ने अनेको बार पृथ्वी पर अवतार लिया है.

आज हम आपको भगवान विष्णु के 24 अवतारों के बारे में बताएंगे. इन में से 23 अवतार अब तक पृथ्वी पर अवतरित हो चुके है जबकि 24 वा अवतार ‘कल्कि अवतार’ के रूप में होना बाकी है. इन 24 अवतार में से 10 अवतार विष्णु जी के मुख्य अवतार है. जिनके बारे में हम आपको बताने जा रहे है.

तो चलिए करते है विष्णु जी के 10 प्रमुख अवतारों के दर्शन….

1 . मत्स्य अवतार

पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्यावतार लिया था.

इसकी कथा इस प्रकार है-

कृतयुग के आदि में राजा सत्यव्रत हुए. राजा सत्यव्रत एक दिन नदी में स्नान कर जलांजलि दे रहे थे.

अचानक उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आई. उन्होंने देखा तो सोचा वापस सागर में डाल दूं, लेकिन उस मछली ने बोला- आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी. तब राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया. मछली और बड़ी हो गई तो राजा ने उसे अपने सरोवर में रखा और फिर देखते ही देखते मछली और बड़ी हो गई.

राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है. राजा ने मछली से वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की. राजा की प्रार्थना सुन साक्षात चारभुजाधारी भगवान विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने कहा कि ये मेरा मत्स्यावतार है.

भगवान ने सत्यव्रत से कहा- सुनो राजा सत्यव्रत! आज से सात दिन बाद प्रलय होगी. तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी. तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना, जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा.

उस समय तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग से बांध देना. उस समय प्रश्न पूछने पर मैं तुम्हें उत्तर दूंगा, जिससे मेरी महिमा जो परब्रह्म नाम से विख्यात है, तुम्हारे ह्रदय में प्रकट हो जाएगी. तब समय आने पर मत्स्यरूपधारी भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान का उपदेश दिया, जो मत्स्यपुराण नाम से प्रसिद्ध है.

2 . कूर्म अवतार

धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी. भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं.

इसकी कथा इस प्रकार है- एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इंद्र को श्राप देकर श्रीहीन कर दिया. इंद्र जब  भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने समुद्र मंथन करने के लिए कहा. तब इंद्र भगवान विष्णु के कहे अनुसार दैत्यों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए.

समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया. देवताओं और दैत्यों ने अपना मतभेद भुलाकर मंदराचल को उखाड़ा और उसे समुद्र की ओर ले चले, लेकिन वे उसे अधिक दूर तक नहीं ले जा सके. तब भगवान विष्णु ने मंदराचल को समुद्र तट पर रख दिया. देवता और दैत्यों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर नागराज वासुकि को नेती बनाया.
किंतु मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा. यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए. भगवान कूर्म  की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा.

3 . बराह अवतार

धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने दूसरा अवतार वराह रूप में लिया था.

वराह अवतार से जुड़ी कथा इस प्रकार है-

पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए. भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की. सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया.

अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए.

जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा. दोनों में भीषण युद्ध हुआ. अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया. इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया.

4 . नर सिंह अवतार

भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था.

इस अवतार की कथा इस प्रकार है-

धर्म ग्रंथों के अनुसार दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था. उसे मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था. उसके राज में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था उसको दंड दिया जाता था. उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था. प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था. यह बात जब हिरण्यकशिपु को पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया.

हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से वह बच गया.

हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई. तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई. जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया.

5 . वामन अवतार

सत्ययुग में प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया. सभी देवता इस विपत्ति से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास गए. तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा.

कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया.

एक बार जब बलि महान यज्ञ कर रहा था, तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी. राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया. लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया. भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया.

जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा. बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक पहुंच गया. बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया. इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुन: लौटाया.

6 . परसुराम अवतार

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक थे. भगवान परशुराम के जन्म के संबंध में दो कथाएं प्रचलित हैं.

हरिवंशपुराण के अनुसार उन्हीं में से एक कथा इस प्रकार है-

प्राचीन समय में महिष्मती नगरी पर शक्तिशाली हैययवंशी क्षत्रिय कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्त्रबाहु) का शासन था. वह बहुत अभिमानी था और अत्याचारी भी, एक बार अग्निदेव ने उससे भोजन कराने का आग्रह किया. तब सहस्त्रबाहु ने घमंड में आकर कहा कि आप जहां से चाहें, भोजन प्राप्त कर सकते हैं, सभी ओर मेरा ही राज है. तब अग्निदेव ने वनों को जलाना शुरु किया.

एक वन में ऋषि आपव तपस्या कर रहे थे. अग्नि ने उनके आश्रम को भी जला डाला. इससे क्रोधित होकर ऋषि ने सहस्त्रबाहु को श्राप दिया कि भगवान विष्णु, परशुराम के रूप में जन्म लेंगे और न सिर्फ सहस्त्रबाहु का नहीं बल्कि समस्त क्षत्रियों का सर्वनाश करेंगे. इस प्रकार भगवान विष्णु ने भार्गव कुल में महर्षि जमदग्रि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्म लिया.

7 . श्रीराम अवतार

त्रेतायुग में राक्षसराज रावण का बहुत आतंक था. उससे देवता भी डरते थे. उसके वध के लिए भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया. इस अवतार में भगवान विष्णु ने अनेक राक्षसों का वध किया और मर्यादा का पालन करते हुए अपना जीवन यापन किया.

पिता के कहने पर वनवास गए. वनवास भोगते समय राक्षसराज रावण उनकी पत्नी सीता का हरण कर ले गया. सीता की खोज में भगवान लंका पहुंचे. वहां भगवान श्रीराम और रावण का घोर युद्ध जिसमें रावण मारा गया.  इस प्रकार भगवान विष्णु ने राम अवतार लेकर देवताओं को भय मुक्त किया.

8 . श्री  कृष्ण अवतार

द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था. इनके पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम देवकी था. भगवान श्रीकृष्ण ने इस अवतार में अनेक चमत्कार किए और दुष्टों का सर्वनाश किया.

9 . बुद्ध अवतार

धर्म ग्रंथों के अनुसार बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार थे परंतु पुराणों में वर्णित भगवान बुद्धदेव का जन्म गया के समीप कीकट में हुआ बताया गया है और उनके पिता का नाम अजन बताया गया है.

यह प्रसंग पुराण वर्णित बुद्धावतार का ही है.

एक समय दैत्यों की शक्ति बहुत बढ़ गई. देवता भी उनके भय से भागने लगे. राज्य की कामना से दैत्यों ने देवराज इंद्र से पूछा कि हमारा साम्राज्य स्थिर रहे इसका उपाय क्या है. तब इंद्र ने शुद्ध भाव से बताया कि सुस्थिर शासन के लिए यज्ञ एवं वेदविहित आचरण आवश्यक है.

तब दैत्य वैदिक आचरण एवं महायज्ञ करने लगे, जिससे उनकी शक्ति और बढऩे लगी. तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए. तब भगवान विष्णु ने देवताओं के हित के लिए बुद्ध का रूप धारण किया. उनके हाथ में मार्जनी थी और वे मार्ग को बुहारते हुए चलते थे.

इस प्रकार भगवान बुद्ध दैत्यों के पास पहुंचे और उन्हें उपदेश दिया कि यज्ञ करना पाप है. यज्ञ से जीव हिंसा होती है. यज्ञ की अग्नि से कितने ही प्राणी भस्म हो जाते हैं. भगवान बुद्ध के उपदेश से दैत्य प्रभावित हुए. उन्होंने यज्ञ व वैदिक आचरण करना छोड़ दिया. इसके कारण उनकी शक्ति कम हो गई और देवताओं ने उन पर हमला कर अपना राज्य पुन: प्राप्त कर लिया.

10 . कल्कि अवतार

धर्म ग्रंथों के अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतार लेंगे, कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा.

यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा.

पुराणों के अनुसार उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान कल्कि पुत्र रूप में जन्म लेंगे. कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन:स्थापना करेंगे.

यदा यदा ही धर्मस्य ,ग्लानिभर्वती भारत
अभ्युत्थानम धर्मस्य, तदात्मान सृजामय्हम

गीता के चौथे अध्याय के इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म बढ़ने लगता है तब मैं स्वयं की रचना करता हूँ. अर्थात जन्म लेता हु. मानव की रक्षा, दुष्टों के विनाश, और धर्म की पुनः स्थापना के लिए, मैं युगों में अलग अलग अवतार में अवतरित होता हूं.

इन्ही मुख्य कारणों की वजह से भगवान विष्णु ने धरती पर कई अवतारों के साथ जन्म लिया.

माना जाता है कि विष्णु इंसानो के संबंधों के साथ भी जीना चाहते थे, जिसकी वजह से उन्होंने कृष्ण का अवतार लिया और दो माओं का प्यार पाया.

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