ऐसीं महिलाएं जिन्होनें बनाई, समाज के लिए नई राह

महिला दिवस पर हम सभी याद करते हैं देश की महिला आबादी को.

इस दौरान जगह-जगह बड़े-बड़े कार्यक्रम किये जाते हैं, जहाँ इनको सभी इस तरह से सलाम करते हैं, जैसे कि हम अपने देश की महिलाओं को श्रधांजलि दे रहे हों.

आज हम आपको बताने वाले हैं, ऐसीं महिलाओं की कहानी, जिन्होंने इस पुरुष-प्रधान समाज में संघर्ष करके अपनी राह बनाई है. इस समाज से इन्होनें बहुत ज्यादा कुछ लिया नहीं है बल्कि उल्टे इसको अपना बलिदान दिया है.

किसी ने छोटे-छोटे बच्चों को जिंदगियां दी हैं, किसी ने पेड़-पौधों को ही अपना बेटा बना लिया और एक महिला तो समाज से ही लड़ने के लिए निकल पड़ती है. इन महिलाओं की कहानी हमारे इतिहास में दर्ज नहीं हो पाती है.

इस बात का दुःख दिल में रह-रह कर दर्द पैदा करता है. आइये आपको मिलाते हैं, इसी तरह की कुछ महिलाओं से जिन्होनें अपने दम से समाज के लिए नई मिसाल लिख दी हैं-

उर्मिला बेहरा

उड़ीसा की रहने वाली उर्मिला जी को ‘वृक्ष माँ’ के नाम से जाना जाता है. उर्मिला जी उड़ीसा में रहती हैं. यहाँ वह अपनी वृक्ष माँ समिति को चला रही हैं. इनका एक ही उद्देश्य है कि इनको रोज एक पेड़ लगाना है. पिछले लगभग 21 सालों से यही काम वह अबतक कर रही हैं. इसके पीछे जो किस्सा छुपा हुआ है, वह भी बड़ा रोचक है. उर्मिला जी को जब कोई भी बेटा नहीं हुआ, तब इन्होनें पेड़ों को ही अपना बेटा मान लिया और तबसे आज तक रोज पेड़ लगा रही हैं. अब तक उर्मिला जी लगभग 20 लाख से ज्यादा पेड़ लगा चुकी हैं. इनका नारा है ‘बेटे हैं मेरे पेड़’.

जन्गम्मा

आंधप्रदेश की रहनी वाली जन्गम्मा जी बेशक अनपढ़ हैं, लेकिन इन्होनें जो काम किया है, उसे करने के लिए कबसे हमारी सरकारें प्रारूप बनाने में लगी हुई हैं. इन्होनें गाँव की 200 अन्य महिलाओं के साथ मिल कर, परम्परागत बीजों का सरंक्षण कर रही हैं. आज जहाँ हमारे किसान विदेशी बीजों का प्रयोग करने पर मजबूर हैं क्योकि खेती में काम आने वाले स्वदेशी बीजों की देश में काफी कमी हो चुकी है. इस परिस्थिति में अपने परम्परागत बीजों को सुरक्षित रखना एक अच्छी पहल है. अब तक ये 75 बीजों को सुरक्षित कर चुकीं हैं.

सिंधुताई सपकाल

इनको महाराष्ट्र के अमरावली में, ‘मदर ऑफ़ थाउजेंड’ के नाम से जाना जाता है. सिंधुताई जी आज हज़ारों ऐसे बच्चों की माँ हैं, जो कभी अनाथ होते थे. सिंधुताई की शादी 10 साल की उम्र में ही कर दी गयी थी. जब इनके तीसरा बच्चा होने वाला था तो इनके पति ने इन्हें घर से इसलिए निकाल दिया था, क्योंकी इनके पति को इनके चरित्र पर शक हो रहा था. तब ऐसे हालात में पवित्र सिंधुताई काफी दिन रेलवे स्टेशन पर रहने को मजबूर थीं. यहाँ स्टेशन पर इन्होनें कई अनाथ बच्चों को देखा और सभी को अपना बना लिया. आज इन्होनें 4 जिलों में, अपनी शाखाएं खोल रखी हैं. जहाँ बच्चों के लिए रहने और पढ़ने की पूरी-पूरी व्यवस्था की जा रही हैं.

निर्मला शर्मा

जागृति महिला समिति के माध्यम से उत्पीड़ित समुदाय, असहाय महिलाओं और गरीब बच्चों को उनके अधिकार दिलाने काम ये संस्था कर रही है. संस्था की प्रमुख हैं श्रीमती निर्मला शर्मा. प्यार से सब इनको माता जी कहकर बुलाते हैं. निर्मला शर्मा जी देश की राजधानी दिल्ली में काम कर रही हैं. गरीब लोग अदालतों में केस नही लड़ सकते हैं, पर निर्मला की खुद गरीब लोगों के केस अपने हाथ में लेती हैं और निकल पडती हैं लोगों को न्याय दिलाने के लिए. गरीबों की बस्तियों को कोई उजाड़ने आता है, तो सबसे पहले निर्मला जी खड़ी मिलती हैं. कई बार तो इन्होनें जनता के लिए पुलिस वालों से भी दो-दो हाथ भी कर लिए हैं. प्रतिदिन इनके यहाँ हज़ारों लोगों की समस्याओं को सुना जाता है.

हमारा समाज इस तरह की कहानियों से भरा हुआ है, बस ज़रूरत है इन कहानियों को अब सबके सामने लाने की और इन देश भक्त माँ-बहनों को हम सबको सलाम करना चाहिए.

Chandra Kant S

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