राजनीति

क्या है “लाल गलियारे” का तीखा सच?

लाल गलियारे – आज भारत में नक्सलवाद एक समस्या ही नहीं वल्कि चुनौती भी है।

इस चुनौती से लड़ने के लिए सरकार नित्य नए कार्य कर रही है। आज भी भारत के सैकड़ों जिले नक्सल प्रभावित क्षेत्र में है और इन क्षेत्रों कोही लाल गलियारे के नाम से जाना जाता है।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों पर हमला, निर्दोष लोगों की हत्या, जमीनी सुरंगें, बम बिस्फोट, सामानांतर सरकारों की स्थापना जैसी खतरनाक गतिविधियाँ नक्सलवादियों द्वारा चलाई जा रही है। वर्तमान समय इन गुटोंमें हज़ारों की संख्या में सक्रिय सदस्य शामिल है, जिनमे पुरुषों के अलावा महिलायें और बच्चे भी शामिल है।

नक्सलवाद की शुरुआत 1967 ई. में भारत, नेपाल, बांग्लादेश सीमा पर स्थित नक्सलबाड़ी गाँव से हुई थी।  जहाँ पर भू स्वामियों के खिलाफ संथाल आदिवासियों ने तीर-कमान के बल पर वहां की भूमि पर कब्ज़ा कर लिया और उनके गोदामों को आम लोगों में बाँट दिया। इसके बाद जिस तरह जंगल में आग फैलती है, उस तेज़ी से यह विद्रोह फैला। लोगों ने देखा कि आज़ादी के दो दशक बाद भी चन्द शक्तिशाली लोग किसान, मजदूर, दलित और आदिवासी लोगों का शोषणकर रहे हैं और इसलिए  इनसे छुटकारा पाने के लिए उन्होंने सशस्त्र विद्रोह को चुना। और यही कारण है कि प्रारंभ में इनसे बड़ी संख्या में पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी व्यक्ति तथा छात्र भी जुड़े।

नक्सलवाद उग्र वामपंथ विचारधारा का ही एक रूप है। जो हिंसा के बल पर सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं। इन्हें लोकतंत्र और संविधान में थोडा भी विश्वास नहीं है। यह अन्धविश्वासी और कट्टर होते हैं, और यह सोच ही इनके संगठन को मजबूती प्रदान करती है।

प्रारंभ में इस आन्दोलन का लक्ष्य, गरीबों के हक़ की रक्षा, मामलों का त्वरित गति से निपटारा, भूमि का पुनर्वितिरण इत्यादि था । लोगों ने देखा सरकार और नेता तो सिर्फ वादे करते आ रहे हैं, लेकिन नक्सली तो उन्हें एक झटके में लागू भी कर रहे है, यही कारण है कि नक्सलवादी आन्दोलन को जनता का व्यापक जनसमर्थन भी मिला।

प्रारंभ में इसे आन्दोलन का रूप देने में चारू मजूमदार वा कानू सान्याल का काफी योगदान था। लेकिन बाद में यह आन्दोलन अपने लक्ष्यों से भटक गया। जिन लोगों के उद्धार के लिए यह आन्दोलन शुरू किया गया, उन्ही का शोषण किया जाने लगा। बिहार में तो नक्सलवादी आन्दोलन जातीय संघर्ष में बदल गया। भारत को अस्थिर करने वाली ताकतों द्वारा इन्हें बड़ी मात्रा में हथियार और पैसा उपलब्ध कराया गया, जिससे इनके इरादेऔर भी मजबूत होते गए।

शुरुआत मे राज्य वा केंद्र सरकारों ने नक्सलवादी आन्दोलन को हलके में लिया परन्तु जैसे-जैसे इनकी राष्ट्र विरोधी गतिविधियां बढ़ने लगी तथा इनके प्रभाव क्षेत्र का विस्तार हुआ, सरकार के कान खड़े हो गए। और सबसे पहले 1971 में केंद्र सरकार ने बंगाल, बिहार, उड़ीसा की सरकारों के साथ मिल कर नक्सलवाद के विरुद्ध व्यापक अभियान चलाया, जिससे इन क्षेत्रों में रहने वाले नक्सलवादी  संगठन तहस-नहस हो गये।इसके बाद कई संगठनकर्ता आये जिन्होंने नक्सली गतिविधियों को पुनर्जीवित किया लेकिनसरकार के विरोधी रवैये के चलते अपनी गतिविधियाँ बढाने में काफी हद तक नाकाम रहे।

लाल गलियारे में होने वाली हलचल आज भी जारी है, इस हलचल को रोकने के लिए सरकार भी हर संभव प्रयास कर रही है, जिनमे नक्सली प्रभावित क्षेत्रों का विकास, पिछड़े बच्चों के लिए स्कूल, युवाओं के लिए रोजगार इत्यादि शामिल है।

Kuldeep Dwivedi

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