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निदा फ़ाजली जैसे शायर मरा नहीं करते – उनके ये लफ्ज़ सीधे रूह को छु जाते है.

कल जगजीत सिंह का जन्मदिन था. 

जगजीत को दुनिया से रुखसत हुए साल हो गए लेकिन आज भी उनकी मखमली आवाज़ ना जाने कितने दिलों को सुकून पहुंचाती है.

कलाकार कभी मरते नहीं है, उनकी कला हमेशा उन्हें जिंदा रखती है.

हिंदुस्तान में आज के दौर में निदा फ़ाज़ली जैसा शायर शायद ही कोई था.

अफ़सोस जगजीत के जन्मदिन के ही दिन निदा फ़ाज़ली ने हम सब से विदा ले ली. 

निदा फाजली के जाने के बात उर्दू शायरी की दुनिया में एक खालीपन सा आ जायेगा जो शायद ही कभी भरा जाएगा.

निदा सिर्फ शायरी या नज्में ही नहीं लिखते थे उनकी लिखी ग़ज़लें भी उतनी ही प्रसिद्द थी. सरफ़रोश फिल्म में जगजीत सिंह की आवाज़ में “होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है” निदा की ही कलम का जादू था.

निदा तो चले गए लेकिन आज हम उनकी लिखी शायरी और नज्मों से रूबरू करवाते है.

होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िन्दगी क्या चीज़ है

उन से नज़रें क्या मिली रोशन फिजाएँ हो गईं
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है

ख़ुलती ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शायरी
झुकती आँखों ने बताया मयकशी क्या चीज़ है

हम लबों से कह न पाये उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है 

ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में

और कुछ दिन यूँ ही औरों को सताया जाये

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें

किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं

रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है

अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं

उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था

सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आँचल में

ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला

इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया

कोई जल्दी में कोई देर में जाने वाला

छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत

धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं

भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में

बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा

किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है

अच्छा-सा कोई मौसम तन्हा-सा कोई आलम
हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है

दिल में ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती
ख़ैरात में इतनी बङी दौलत नहीं मिलती

कुछ लोग यूँही शहर में हमसे भी ख़फा हैं
हर एक से अपनी भी तबीयत नहीं मिलती

कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी
चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसको चाहा उसे अपना ना सके
जो मिला उससे मुहब्बत ना हुई

सब की पूजा एक सी अलग अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत

पूजा घर में मूर्ती मीरा के संग श्याम
जितनी जिसकी चाकरी उतने उसके दाम

सीता रावण राम का करें विभाजन लोग
एक ही तन में देखिये तीनों का संजोग

मिट्टी से माटी मिले खो के सभी निशां
किस में कितना कौन है कैसे हो पहचान  

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आस्माँ नहीं मिलता

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता

निदा की हर एक शायरी,हर नज़्म और हर एक गज़ल में अलग ही बात थी. हर बड़ी छोटी बात को कितनी आसानी से लफ़्ज़ों की माला में पिरो देते थे. मुहब्बत हो या नफरत, यारों से बिछड़ने का गम हो या शहर छूटने की टीस या फिर मज़हब की दीवार हर एक बात के लिए निदा थे और उनकी शायरी थी.

कल अचानक हार्ट अटैक की वजह से निदा फ़ाज़ली की 78 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गयी. लेकिन जब तक उनकी शायरी और गजलें है तब तक वो जिंदा रहेंगे और हमें जिंदगी के छोटे बड़े फलसफे सिखाते रहेंगे.

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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Yogesh Pareek

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