ह्यूमर

हाय! ये रिक्शेवाले, बातूनी कहीं के…

एक बेस्ट बस की आड़ में आपकी तरफ आता ऑटो- रिक्शा! हाथ हिलाते-हिलाते थक जाने पर जैसे उस दर्द का सटीक इलाज हो! यहाँ मुंबई में बड़ी मशक्क़त के बाद, ऑटोरिक्शा मिल जाने वाले सुकून को एक बड़े ही सामान्य तरीके में व्यक्त किया जाता है! वह भी एक वाक्य में, “यार आज रिक्शा जल्दी मिल गया” लेकिन ख़बरदार! उसके इस सीधे-साधे मुखौटे के पीछे एक बातूनी शैतान छुपा हो सकता है.
एक ऐसा शैतान जो आपको ना चाहते हुए भी बातें करने पर मजबूर कर देगा.

मुंबई एक ऐसा शहर है जहां का मौसम हमेशा नम और गर्म होता है लेकिन फिर भी कुछ बातूनी ऑटो –रिक्शा चालक इस मौसम के बारे में बातें करने की जुर्रत कर ही देते हैं. फिर इस मौसम की बात को अपने गाँव के मौसम से जोड़ना-तोडना शुरू कर देते हैं. फिर आपके गाँव के मौसम के बारे में बातें करना शुरू कर देते हैं और फिर अंत में यह हो सकता है की आपके पास छुट्टे पैसे मौजूद ना होने पर आपसे झगडा कर लें! कई ऑटो चालकों को राजनीति से बड़ा लगाव होता है ! फिर क्या?!

एक गाली सडकों के नाम, एक गाली बगल वाले ओटो चालाक के नाम, एक गाली पूरी की पूरी सरकार के नाम और एक गाली अपने मन में दे देते हैं, आप के नाम. कभी- कभी तो इन गालियों में इतना व्यंग होता है कि हंस- हंस कर जबड़ा दर्द करने लगता है.
बिना आपके जाने-समझे ‘आप कहाँ रहते हो?’, ‘आपका नाम क्या है?’, आपकी बीवी का नाम क्या है?, ‘उसकी उम्र क्या है?’ ऐसे कई सवालों के जवाब यूँ चुटकियाँ बजाते ही प्राप्त कर सकते हैं.

इन सब बातों से पता चलता है की एक बम्बैय्या ऑटो-रिक्शा चालक बहुत ही गुणवान् होता है. तंग और संकरे रास्तों से भी कोई न कोई जुगाड़ कर के ऑटोरिक्शा निकल ही आता है.

मुंबई में ऑटो- रिक्शा की कई नस्लें पायी जाती हैं. कोई रिक्शा चालक अपने ऑटो के पीछे वाले हिस्से में ‘माँ का आशीर्वाद’ लिखता है तो कोई किसी लोकप्रिय बॉलीवुड अभिनेता या अभिनेत्री की तस्वीर सजा देता है. ज्यादातर तसवीरें अभिनेत्रियों की ही होती हैं. कई ऑटो- चालक मीटर में फेर- बदल करके यात्रिओं को लूटने का पूरा बंदोबस्त करके ही घर से निकलते हैं. कईओं की मजबूरी होती है और कई जान बूझकर इस हरकत को अंजाम देते हैं.
          

मुंबई में करीब-करीब २,५०,००० ऑटो-रिक्शा रोजाना २०० से लेकर २५० किलोमीटर का सफ़र पूरा करते हैं जिसमें ४ से ५ लीटर सी. एन. जी की खपत होती है. कभी- कबार ऑटो कहीं अगर रुक जाए, इसकी वजह रिक्शे में आई खराबी हो सकती है या रास्ते का खराब होना, अंजाम उस ऑटो चालाक को ही भुगतना पड़ता है! मुंबई में करीब- करीब आधे से ज्यादा ऑटो- चालक भाड़े का ऑटो चलाते हैं इसलिए कमाए हुए पैसों में से थोडा हिस्सा ऑटो- रिक्शा के मालिक को जाता है, फिर सी. एन. जी. का खर्चा अलग. ऐसी कई कठिनाइयों के बावजूद मुंबई के ऑटो वाले हँसना और ढेर सारी बातें करना नहीं भूलते. यह कहना गलत नहीं होगा कि आज कल की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में ऑटो में बैठना और उसके चालक से गप्पे लड़ाना  हमें मुस्कुराने की एक वजह दे ही देता है.

तमन्ना तो यही रहेगी की हम मुस्कुराना ना भूलें और मुंबई के रिक्शेवाले ढेर सारी बातें करना. बस यही है कि मीटर से छेड़- छाड़ बंद हो जाए तो ज़िन्दगी थोड़ी आसान हो जायेगी!

Durgesh Dwivedi

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