Categories: विशेष

इस मंदिर में रावण की पूजा नहीं की तो शिव की पूजा हो जाएगी बेकार!

रावण बुराई का प्रतीक, राक्षसों का राजा.

लेकिन अगर ये कहा जाए कि एक स्थान ऐसा है जहाँ रावण की पूजा के बिना भगवान् शिव की पूजा अधूरी मानी जाती है.

जी हाँ ये सच है हमारे देश में एक ऐसा मंदिर है जहाँ भगवान शिव की पूजा तब तक व्यर्थ मानी जाती है जब तक की राक्षसराज की पूजा ना की जाए.

आइये आपको बताते है इस अनोखे मंदिर के बारे में.

राजस्थान में उदयपुर को झीलों की नगरी कहा जाता है. इस शहर की सुन्दरता वेनिस जैसी ही है. उदयपुर शहर में झालोड़ की पहाड़ियों में एक प्राचीन शिव मंदिर स्थित है.

इस मंदिर में दर्शन और पूजा अर्चना करने के लिए बहुत से लोग आते है. इस शिव मंदिर की सबसे खास बात है कि यहाँ भगवन शिव के साथ रावण की भी पूजा होती है. कमाल की बात ये है कि इस मंदिर में रावण की पूजा किये बगैर शिव की पूजा अधूरी मानी जाती है.

ऐसा क्या हुआ था यहाँ जो रावण को भगवान् से पहले पूजा जाता है. उस रावण को जिसका पुतला दशहरे पर बुराई के प्रतीक के रूप में जलाया जाता है .

देखिये आगे की स्लाइड में 

कहा जाता है कि रावण ने कैलाश पर जाकर भगवान शिव की भीषण तपस्या की. तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने रावण को वरदान मांगने को कहा. वरदान में रावण ने भगवन शिव को अपने साथ चलने को कहा. भगवान् शिव ने शिवलिंग के रूप में रावण के साथ जाना स्वीकार किया. लेकिन शिव ने शर्त रखी कि कैलाश से लंका के रास्ते में अगर रावण ने शिवलिंग नीचे रखा तो शिव सदा के लिए वहीँ स्थापित हो जायेंगे.

रास्ते में थकान की वजह से रावण ने कुछ देर विश्राम किया और भूल से शिवलिंग नीचे रख दिया.तब से लेकर आजतक शिवलिंग वहीँ स्थापित है.

इस शिवलिंग की भी रावण ने लगातार 12 वर्षों तक तपस्या की. हर रोज़ रावण 100 कमल पुष्प शिव को चढ़ाता था. रावण की तपस्या को भंग करने के लिए एक दिन ब्रह्मा ने एक पुष्प कम कर दिया. जब रावण को पुष्प नहीं मिला तो रावण ने शिव के चरणो में अपना शेस्श काट कर अर्पित कर दिया. ये देखकर शिव अतिप्रसन्न हुए और रावण के पेट में अमृत कलश स्थापित कर दिया.

रावण की भक्ति देख कर शिव ने कहा कि इस मंदिर में शिव की उपासना से पहले रावण की पूजा होगी, ऐसा नहीं करने पर शिव की अर्चना व्यर्थ मानी जाएगी. तभी से इस स्थान पर शिव से पहले रावण की अर्चना की जाती है.

इस मंदिर से पहले शनि देव का मंदिर है. गाड़ियाँ आदि वाहन केवल वहीँ तक जा सकते है उसके आगे की 2 किलोमीटर की यात्रा पैदल ही तय करनी पड़ती है. उदयपुर क्षेत्र में सबसे पहले होलिका दहन भी यहीं अवारगढ़ किले के पास कमलनाथ मंदिर में ही होता है.

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

Share
Published by
Yogesh Pareek

Recent Posts

Jawaharlal Nehru के 5 सबसे बड़े Blunders जिन्होंने राष्ट्र को नुकसान पहुंचाया

भारत को आजादी दिलाने में अनेक क्रांतिकारियों ने अपने जीवन का बलिदान दिया था, पूरे…

4 years ago

Aaj ka Rashiphal: आज 3 अप्रैल 2020 का राशिफल

मेष राशि आप अपने व्यापार को और बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहेंगे. कार्यक्षेत्र में…

4 years ago

डॉक्टर देवता पर हमला क्यों? पढ़िए ख़ास रिपोर्ट

भारत देश के अंदर लगातार कोरोनावायरस के मामले बढ़ते नजर आ रहे हैं. डॉक्टर्स और…

4 years ago

ज्योतिष भविष्यवाणी: 2020 में अगस्त तक कोरोना वायरस का प्रकोप ठंडा पड़ जायेगा

साल 2020 को लेकर कई भविष्यवाणियां की गई हैं. इन भविष्यवाणियों में बताया गया है…

4 years ago

कोरोना वायरस के पीड़ित लोगों को भारत में घुसाना चाहता है पाकिस्तान : रेड अलर्ट

कोरोना वायरस का कहर लोगों को लगातार परेशान करता हुआ नजर आ रहा है और…

4 years ago

स्पेशल रिपोर्ट- राजस्थान में खिल सकता है मोदी का कमल, गिर सकती है कांग्रेस की सरकार

राजस्थान सरकार की शुरू हुई अग्नि परीक्षा उम्मीद थी कि सचिन पायलट को राजस्थान का…

4 years ago