दक्षिण का काशी रामेश्वरम
जो स्थान उत्तर भारत में काशी का है वही स्थान दक्षिण में रामेश्वरम का है.
तमिलनाडु के रामनाथपुरम ज़िले में स्थित रामेश्वरम की गणना न सिर्फ 12 ज्योतिर्लिंगों में होती है अपितु रामेश्वरम सबसे पवित्र चार धामों में से भी एक है.
रामेश्वरम का मंदिर द्रविड़ शैली में बना कला और स्थापत्य का अद्भुत नमूना है. इसके निर्माण के बारे में कहा जाता है कि इसे लंका के राजा पराक्रमबाहू ने बनवाया था. कालांतर में इस मंदिर का जीर्णोद्धार रामनाथपुरम के राजा उडैयान सेतुपति ग्यारहवीं सदी में करवाया था.
पहले ये मन्दिर एक टापू पर था जिसे जोड़ने के लिए आदि सेतु था. कहा जाता है कि ये वही सेतु था जो श्री राम द्वारा लंका पर चढ़ाई के लिए बनाया गया था.
लंका विजय के बाद विभीषण के अनुरोध पर इस सेतु को तोड़ दिया गया, इस सेतु के अवशेष आज भी दिखाई देते है.
रामेश्वरम को भारत से जोड़ने के लिए एक पुल है जिसका निर्माण ब्रिटिश काल में किया गया था. इस पुल की खासियत ये है कि समुद्र पर बना ये पुल बड़े बड़े जहाजों के आने पर बीच में से दो हिस्सों में बंट जाता है. रामेश्वरम का मंदिर अगर प्राचीन स्थापत्य का अद्भुत नमूना है तो ये पुल वर्तमान स्थापत्य का.
रामेश्वरम के मंदिर में आस पास नौ शिवलिंग और है जिनके बारे में कहा जाता है कि इनकी स्थापना विभीषण ने की थी.
जब लंका नरेश पराक्रमबाहू ने इसका निर्माण कार्य करवाया तो इस मंदिर में केवल शिवलिंग की स्थापना की गयी, देवी स्वरुप की नहीं इसीलिए इस मंदिर को निसंगेश्वर मंदिर कहा जाता है.
रामेश्वरम मंदिर के भिन्न भिन्न भागों का निर्माण भिन्न भिन्न लोगो द्वारा किया गया है जिसमे राजा, मदुरै के धनिक शामिल है.
रामेश्वरम ना सिर्फ धार्मिक दृष्टि से अपितु कला और पर्यटन की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है.
रामेश्वरम मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे बड़ा गलियारा है. इस मंदिर में अनगिनत खम्बे है जो दिखने में एक जैसे लगते है पर अगर करीब से देखा जाये तो हर खम्बे पर की गयी कलाकृति अलग है. रामेश्वरम मंदिर में अलग अलग तरह के पत्थरों का उपयोग किया गया है. कमाल की बात ये है कि यहाँ आस पास कोई पर्वत नहीं जहाँ से ये पत्थर लाये जा सके.
कहा जाता है ये विशालकाय पत्थर श्रीलंका से लाये गए थे.
रामेश्वरम का इतिहास
रामेश्वरम का इतिहास भी रोचक है, धर्मग्रंथों के अनुसार कहा जाता है कि सीता हरण होने पर श्री राम ने कई तरह से बिना युद्ध के सीता को प्राप्त करने की कोशिश की पर सफल नहीं हो सके. अंत में जब वानर सेना की सहायता से युद्ध करने की ठानी तो भी चुनौती ये थी कि रावण जैसे प्रकांड विद्वान और शक्तिशाली को कैसे हराया जाए. अंततः श्री राम ने शिव की स्थापना की और पूजन और यज्ञ के लिए रावण को पुरोहित बनाया.
रावण ने पुरोहित बनकर यज्ञ करवाया और राम को विजयी होने का आशीर्वाद दिया.
रामेश्वरम के पास ही गंधमादन पर्वत भी है, इस पर्वत के लिए कहा जाता है कि ये वही पर्वत है जहाँ से हनुमान ने लंका पर छलांग लगाई थी.
जिस तरह काशी को उत्तर भारत में मोक्ष देने वाली नगरी माना जाता है वैसा ही महात्म्य रामेश्वरम का भी है. यहाँ भी बहुत से लोग अपने पूर्वजों का तर्पण करने के लिए आते है.
एक तीर्थ स्थल के साथ साथ रामेश्वरम एक खूबसूरत पर्यटक स्थल भी है. समुद्र की लहरे, मनोरम नज़ारे और अलग तरह के मंदिर इस स्थान का रूप निखारते है.
ये थी कहानी रामेश्वरम की जहाँ राम को विजयी बनाए के लिए रावण ने में पुरोहित का कार्य किया था.
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