Categories: विशेष

भगतसिंह का भारत ऐसा तो नहीं होता

कई दफे एक बात ज़ेहन में आती हैं कि एक 23 साल के नौजवान के दिल दिमाग की क्या मनः स्थिति रही होगी जो अपने देश को आज़ाद कराने के लिए उसने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया, अपनी जिंदगी भी.

क्या वजह होगी उस लड़के की इस सोच के पीछे?

बस यही न कि वह खुद को, अपने मुल्क को, मुल्क में रहने वाले अपने लोगों को आज़ाद देखना चाहता था.

23 साल उमर ही क्या होती हैं आप ख़ुद बतायिएं?

जब मैं इस उमर में था, तब मुझे अपने करियर का चुनाव करना ही दुनिया का सबसे मुश्किल काम लगता था और उस लड़के ने दुनिया के नक़्शे में एक ऐसे देश की कल्पना कर ली थी जो युवा होगा, आज़ाद होगा, उन्नत होगा और अपने इस सपने को साकार करने के लिए उसने ख़ुद को फांसी पर भी झुला दिया.

लेकिन हमने उस नौजवान को क्या दिया?

हमने उस 23 साल के लड़के को क्या दिया? हमने उस भगत सिंह को क्या दिया?

दंगे-फ़साद, जाति और धर्म की लड़ाई, भ्रष्टाचार से डूबा हुआ एक देश जहाँ पर दो वक़्त की रोटी एक गरीब को नसीब नहीं होती हैं. जहाँ आये दिन लोग हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर एक दुसरे को मारने के लिए तैयार हो जाते हैं.

मुझे यकीन हैं भगतसिंह का भारत ऐसा नहीं था. उन्हों ने ऐसे भारत के लिए तो खुद की जान नहीं दी थी.

आज मैं आप को जून 1928 में भगत सिंह के लिखे एक ख़त के कुछ अंश पढ़ता हूँ, जो लाहौर में 1924 के दंगों के बाद उन्होंने ने लिखे थे. उनका यह ख़त  उन्होंने हर उस व्यक्ति के लिए लिखा था, जो एक देश को बनाने में नीव का काम करता हैं.

1.  भारत के लिए

भारत वर्ष की दशा इस समय बड़ी दयनीय हैं. एक धर्म के अनुयायी दुसरे धर्म के अनुयाईयों के जानी दुश्मन हैं. अब तो एक धर्म का होना ही दुसरे धर्म का कट्टर शत्रु होना हैं. यदि इस बात का यकीन न हो तो अभी लाहौर के दंगे ही देख लो. कैसे मुसलमानों ने निर्दोष हिन्दू और सिखों को मारा और सिखों ने भी वश चलते कोई कसर नहीं छोड़ी. यह मारकाट इसलिए नहीं की गयी कि फलां आदमी दोषी हैं वरन इसलिए की गयी क्योकि फलां आदमी हिन्दू हैं या मुस्लिम हैं या सिख. क्या किसी व्यक्ति का हिन्दू होना या मुस्लिम होना उसको मार देने का पर्याप्त तर्क हैं. जब ऐसी स्थिति हो तो ऐसे हिंदुस्तान का भगवान् ही मालिक हैं.

2.  धर्म के लिए

अगर यही स्थिति रही तो हिंदुस्तान का भविष्य बहुत अन्धकारमय नज़र आता हैं. इन धर्मो ने हिंदुस्तान का बेड़ा गर्क कर दिया हैं और पता नहीं ये धार्मिक दंगे भारत का पीछा कब छोड़ेंगे. इन दंगों ने भारत वर्ष को दुनिया में बदनाम कर दिया हैं. हमने देखा हैं कि इस अन्धविश्वास के बहाव में सभी बह जाते हैं कोई बिरला हिन्दू, मुसलमान या सिख होता हैं जो खुद का दिमाग ठंडा रख पाता हैं. बाकि सब के सब धर्म के यह नामलेवा अपने नामलेवा धर्मं का रौब कायम रखने के लिए डंडे, लाठिया, तलवार छुरें हाथ में पकड़ लेते हैं और आपस में सर फोड़-फोड़ कर मर जाते हैं.

3.  नेताओं के लिए

इन दंगों के पीछे साम्प्रदायिक नेताओं का हाथ हैं.इस समय हिंदुस्तान के नेताओं ने ऐसी लीद की हैं कि चुप ही भली. जो नेता स्वराज का बीड़ा उठाएं बैठे हैं वो समान राष्ट्रीयता और स्वराज-स्वराज कहते नहीं थकते और कुछ नेता सर छिपाएं बैठे हैं और कुछ इस धर्मान्धता के बहाव में है. ऐसे नेता जो साम्प्रदायिक आन्दोलनों में जा मिले हैं, जमीन खोदों तो सैकड़ों निकल आते हैं और जो नेता हृदय से सब का भला चाहते हैं वह बहुत कम हैं. ऐसा लग रहा हैं कि भारत के नेतृत्व का दिवाला पिट गया हैं.

4.  मिडिया के लिए

दुसरे सज्जन जो साम्प्रदायिक दंगो को भड़काने में विशेष हिस्सा लेते हैं वह हैं अखबार वाले. पत्रकारिता का व्यवसाय किसी समय बहुत ऊँचा समझा जाता था, आज बहुत ही गन्दा हो गया हैं. यह लोग मोटे-मोटे शीर्षक देकर लोगों की भावनाएं भड़काते हैं और परस्पर सिर फुटौवल करवाते हैं. एक-दो जगह नहीं बल्कि कई जगह सिर्फ इसलिए दंगे हुए क्योकि इन अखबारों ने बड़े उतेजना पूर्ण लेख लिखे हैं. ऐसे लेखक बहुत कम हैं जिनका ऐसे दिनों में भी दिल और दिमाग शांत रहा हो. अख़बारों का असली कर्तव्य शिक्षा देना, लोगों से संक्रिणता निकालना, साम्प्रदायिकता हटाना, परस्पर मेल-मिलाप कराना हैं लेकिन इन्होने अपना मुख्य कर्तव्य अज्ञानता फैलाना, साम्प्रदायिकता फैलाना, लड़ाई-झगड़े करवाना और राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया हैं. यही सब सोच कर आँख में खून के आंसू आते हैं कि “भारत बनेगा क्या?”

दंगों की वजह

यदि इन दंगों की वजह खोजे तो इसका कारण आर्थिक ही जान पड़ता हैं. असहयोग आन्दोलन के वक़्त नेताओं और पत्रकारों ने कई कुर्बानिया दी और उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ गयी. जिससे लोगों को उन पर अविश्वास सा हो गया. भारत में लोगों की आर्थिक दशा इतनी ख़राब हैं, कि एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति का अपमान सिर्फ एक चवन्नी के लिए भी कर सकता हैं. भूख और दुःख से आतुर इंसान अपने सभी सिद्धांत तांक पर रख देता हैं. सच भी हैं “मरता क्या न करता”. इन समस्याओं के सुधार के रूप में एक ही उपाय हो सकता हैं वह ये हैं कि भारत की आर्थिक दशा में सुधार हो और वह तभी संभव हैं जब यहाँ के गरीब, मेहनतकश किसान और मजदुर वर्ग यह समझे कि उनका असली दुश्मन कोई हैं तो वह हैं पूंजीपति और पूंजीवाद हैं न कि धर्म, नस्ल, रंग और जाति. इन सब से ऊपर उठ कर हम सब को यह मानना होगा कि हम इंसान पहले हैं.

-भगत सिंह

शहीद-ए-आज़म द्वारा 1928 में लिखा गया यह ख़त बिलकुल आज के भारत की कहानी बताता हैं.

भगत सिंह ने इस भारत की कल्पना तो उस वक़्त भी नही की थी, तो आज के इस भारत को वह कैसे स्वीकार कर पाएंगे.

ख़त के यह अंश एक किताब “इन्कलाब जिंदाबाद” के हैं.

यदि इस ख़त को आप पूरा पढना चाहे तो उस किताब और  हिल्लेले नाम के एक ब्लॉग में भी जा कर पढ़ सकते हैं.

Sagar Shri Gupta

Share
Published by
Sagar Shri Gupta

Recent Posts

Jawaharlal Nehru के 5 सबसे बड़े Blunders जिन्होंने राष्ट्र को नुकसान पहुंचाया

भारत को आजादी दिलाने में अनेक क्रांतिकारियों ने अपने जीवन का बलिदान दिया था, पूरे…

4 years ago

Aaj ka Rashiphal: आज 3 अप्रैल 2020 का राशिफल

मेष राशि आप अपने व्यापार को और बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहेंगे. कार्यक्षेत्र में…

4 years ago

डॉक्टर देवता पर हमला क्यों? पढ़िए ख़ास रिपोर्ट

भारत देश के अंदर लगातार कोरोनावायरस के मामले बढ़ते नजर आ रहे हैं. डॉक्टर्स और…

4 years ago

ज्योतिष भविष्यवाणी: 2020 में अगस्त तक कोरोना वायरस का प्रकोप ठंडा पड़ जायेगा

साल 2020 को लेकर कई भविष्यवाणियां की गई हैं. इन भविष्यवाणियों में बताया गया है…

4 years ago

कोरोना वायरस के पीड़ित लोगों को भारत में घुसाना चाहता है पाकिस्तान : रेड अलर्ट

कोरोना वायरस का कहर लोगों को लगातार परेशान करता हुआ नजर आ रहा है और…

4 years ago

स्पेशल रिपोर्ट- राजस्थान में खिल सकता है मोदी का कमल, गिर सकती है कांग्रेस की सरकार

राजस्थान सरकार की शुरू हुई अग्नि परीक्षा उम्मीद थी कि सचिन पायलट को राजस्थान का…

4 years ago