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यह हैं भारतीय टीम के जुगाडु क्रिकेटर्स

कहा जाता है कि जीवन में उतार-चढ़ाव का बहुत बड़ा कारण ‘भाग्‍य’ (लक) होता है।

इतने सालों में हम देखते आए हैं कि कई क्रिकेटर अपने भाग्‍य के दम पर अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर तक पहुंच चुके हैं। स्‍पष्‍ट रूप से बताऊं तो यह परिदृष्‍य भारतीय टीम में आमतौर पर देखने को मिलता हैं। भारत में ऐसे कई क्रिकेटर रहे जिन्‍होंने भाग्‍य के दम पर अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट खेला जो असल में कई प्रतिभाशाली क्रिकेटरों का सपना ही बनकर रह गया।

मेहनत से ज्‍यादा भाग्‍य के दम पर खिलाडि़यों ने टीम इंडिया में अपनी जगह बना ली।

किसी की भावनाओं को आहत न पहुंचाने तथा किसी क्रिकेटर पर निजी वार नहीं करते हुए हम बस यह बताने जा रहे हैं कि भारतीय टीम में ऐसे कौनसे जुगाडु क्रिकेटर्स रहे जिसे अपनी क्रिकेट की शैली और प्रतिभा से अधिक भाग्‍य का साथ मिला और वो अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर देश का प्रतिनिधित्‍व करने में सफल रहे।

रोहित शर्मा-

इन्‍हें तो कोई भी कह सकता है कि यह लकी क्रिकेटर हैं। वन-डे में दो दोहरे शतक अपने नाम करने वाले एकमात्र बल्‍लेबाज रोहित शर्मा पर चयनकर्ता बहुत मेहरबान हैं। उन्‍हें प्रतिभा का धनी और गॉड गिफ्ट चाइल्‍ड की उपाधि देते हुए टीम में मौका दिया जाता रहा। टेस्‍ट में भी शानदार पदार्पण करने वाले रोहित ने बल्‍ले से काफी बार निराश किया। उनका प्रदर्शन इतना शानदार नहीं रहा कि वे अंतरराष्‍ट्रीय टीम में खेले। मगर फिर भी इंजमाम और सचिन का मिश्रण बताते हुए रोहित को अनेक बार मौके मिले। अब अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर किसी को खूब मौके मिले तो क्‍या वो एक मैच में भी हीरो नहीं बनेगा?

स्‍टुअर्ट बिन्‍नी-

ज्‍यादा कहने की जरूरत नहीं, लेकिन स्‍टुअर्ट बिन्‍नी अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट में अत्‍यधिक सफल क्रिकेटर नहीं रहे। बांग्‍लादेश के खिलाफ चार रन देकर छह विकेट और लॉर्ड्स में इंग्‍लैंड के खिलाफ दूसरे टेस्‍ट में 78 रन की पारी को छोड़ दिया जाए तो वह टीम के लिए उपयोगी खिलाड़ी साबित नहीं हुए। वह ज्‍यादातर फ्लॉप रहे और भारतीय टीम में एक मजबूत ऑलराउंडर की कमी को अच्‍छे से नहीं भर सके। बिन्‍नी के पिता रोजर बिन्‍नी भारतीय टीम की चयन समिति में हैं और कहा जाता है कि पिता के बल पर बेटे की किस्‍मत का सितारा भी चमका। अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर हम कह सकते हैं कि स्‍टुअर्ट बिन्‍नी बहुत भाग्‍यशाली क्रिकेटर है।

सर रवींद्र जडेजा-

रवींद्र जडेजा भारत के लिए किफायती ऑलराउंडर बन सकते थे। 2013-14 में जडेजा का प्रदर्शन सराहनीय भी रहा। मगर पिछले साल से उनके प्रदर्शन में गिरावट आई। धोनी को उन्‍हें कुछ ज्‍यादा ही मौके दिलाने का श्रेय भी जाता है। जडेजा ने अपने कप्‍तान के भरोसे को तोड़ा और बहुत ज्‍यादा मौके मिलने के बाद भी फीका प्रदर्शन किया। 2015 विश्‍व कप के समय जडेजा के चयन पर काफी ऊंगलियां उठी थी, लेकिन यह ‘लकी बॉय’ विश्‍व कप टीम का हिस्‍सा बना और बिना कोई यादगार प्रदर्शन किए सेमीफाइनल तक खेला। जडेजा को सर रवींद्र जडेजा कहा जाता है क्‍योंकि वह बड़ी-बड़ी ढींघे मारने के लिए जाने-जाते हैं।

वरुण एरॉन-

संभवत: भारत के सबसे तेज गेंदबाज जिसमे पास निरंतरता का अभाव है। एरॉन के पास तेज गेंदबाजी करने के सारे गुण मौजूद हैं। मगर खराब लाइन और लेंथ के कारण वह फ्लॉप गेंदबाज साबित हुए। उन्‍हें तो अपने पहले वन-डे विकेट के लिए 48वें ओवर तक इंतजार करना पड़ा था। एरॉन को बार-बार मौका दिलाने का श्रेय ऑस्‍ट्रेलियाई दिग्‍गज ग्‍लेन मॅक्‍ग्राथ और महेंद्र सिंह धोनी को जाता है। असल में राष्‍ट्रीय क्रिकेट एकेडमी में मॅक्‍ग्राथ के चहेते शिष्‍य हैं एरॉन। धोनी भी तेज गति को प्राथमिकता देने के इरादे से एरॉन का समर्थन करते आए। मगर एरॉन ने खूब रन खर्च किए  और विकेट भी नहीं ले सके। फिर भी उन्‍हें मौके मिले। तो अब आप भी कहेंगे ही न कि ‘वरुण एरॉन इज ए लकी गाय’ यानी भाग्‍यशाली क्रिकेटर एरॉन।

रोमेश पोवार-

हरभजन सिंह जैसा दिग्‍गज ऑफस्पिनर होने के बावजूद पोवार को मौका दिया गया। कुछ लोग तो आज तक यही सोचते हैं कि पोवार को उनके स्‍टाइलिश ‘गॉगल’ (चश्‍में) की वजह से टीम में शामिल किया गया। एक दो पारियों को छोड़ दे तो पोवार गेंद और बल्‍ले से कभी भारतीय टीम के लिए किफायती नहीं रहे। पोवार को लूप गेंदें फेंकने के लिए घरेलू क्रिकेट में जाना जाता था। राहुल द्रविड़ ने पोवार का खूब समर्थन किया। चयनकर्ताओं ने पोवार को कई मौके देकर उन्‍हें भारतीय टीम के लकी बॉयज की सूची में शामिल कर दिया।

दिनेश मोंगिया-

कुछ लोगों को तो शायद अब इनका नाम भी याद नहीं होगा। मगर एक समय दिनेश मोंगिया भारतीय टीम के मध्‍यक्रम की जान रहे और शतक भी जमाए। बाएं हाथ के बल्‍लेबाज की खासियत रही कमजोर टीमों के खिलाफ शतक बनाना और दिग्‍गज टीमों के खिलाफ फ्लॉप होना। पंजाब के इस ऑलराउंडर को सौरव गांगुली का समर्थन प्राप्‍त रहा। गांगुली ने हेमंग बदानी की जगह दिनेश मोंगिया को मौका देना सही समझा और फ्लॉप रहने के बावजूद उन्‍हें अपनी टीम में बनाए रखा। तो इस तरह मोंगिया भी भारतीय टीम के लकी क्रिकेटर बने।

अजय रात्रा-

शायद कुछ लोग इस खिलाड़ी को भी नहीं जानते होंगे। मगर वास्‍तव में यह एक ऐसे विकेटकीपर बल्‍लेबाज रहे जिसे भारतीय टीम में खुद को साबित करने के कई मौके मिले। हुआ यूं कि भारतीय टीम के पास नयन मोंगिया के बाद कोई स्‍थायी कीपर नहीं था जो बेहतर बल्‍लेबाजी भी करे। तब चयनकर्ताओं ने रात्रा को मौका दिया। रात्रा को भी अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर कई मौके मिले, जिसने उन्‍हें भारतीय क्रिकेट के लकी सितारों में जगह दिलाई।

देबाशीष मोहंती-

इन्‍हें मोहम्‍मद अजहरुद्दीन ने काफी मौके दिलाए। भाग्‍यशाली ही रहे कि 1999 का विश्‍व कप भी खेल आए। देबाशीष का लक मैदान के अंदर तो ज्‍यादातर चलते नहीं दिखा। वह गेंद से विकेट लेने का अवसर तो बनवाते थे, लेकिन कोई फील्‍डर बल्‍लेबाज द्वारा दिलाए कैच को लपक नहीं पाता था। देबाशीष को टीम इंडिया में कई मौके मिले। मगर वह कभी शानदार प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी नहीं रहे। इसी वजह से मोहंती भारत के लकी क्रिकेटर बन गए।

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ महेंद्र सिंह धोनी के करीबी माने जाने वाले रवींद्र जडेजा को तो नहीं चुना गया, लेकिन स्‍टुअर्ट बिन्‍नी के चयन ने एक बार फिर आलोचनाओं को बल दिया। इसके बाद से भारतीय टीम को लेकर यह बात उठने लगी है कि बिन्‍नी को उनके पिता और भाग्‍य की बदौलत टीम में शामिल किया गया। इसी को ध्‍यान में रखते हुए हमने उन क्रिकेटरों के बारे में बताना चाहा जो भाग्‍य के बलबूते टीम का हिस्‍सा बने।

Abhishek Nigam

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