भारत

जब रात के अंधेरों में बेखौफ घूम सकेंगी बेटियां, तब होगी असली आज़ादी

आज देशभर में आज़ादी का जश्न मनाया जा रहा है, मगर क्या देश वाकई आज़ाद हो पाया है?

क्या हमारे देश की बेटिया आज़ाद महसूस करती हैं? क्यो वो आज़ादी से बिना किसी डर के सुनसान सड़क या रात के अंधेरे में घूम सकती है? अगर इन सवालों का जवाब ना है, तो माफ करिएगा देश अब तक आज़ाद नहीं हो पाया है. अब वो अंग्रेज़ों का नहीं घटिया मानसिकता का गुलाम बना हुआ जिससे आज़ाद हुए बिना आज़ादी का जश्न बेमानी है.

आज़ादी के 7 दशक बाद देश में रेप और छेड़छाड़ की जितनी घटनाए हो रही है यकीनन वो पहले कभी नहीं हुई होंगी.

ऐसे में जब देश में 6 महीने की बच्ची से लेकर 60 साल की महिला तक खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर पा रही, हम कैसे मान लें कि देश वास्तव में आज़ाद है. हर पल देश की बेटियों को डर सताता रहता है पता नहीं कब, किस रूप में और कहा किसी भेड़िये से सामना हो जाए.

अपनी गली-मुहल्ले में भी वो शाम होते ही डरने लगती है सड़कों पर निकलते वक्त, हर वक्त किसी अनहोना का आशंका से भयभीत रहता है उसका दिल. रात में सड़क पर निकल जाए तो मनचले उसे अपना जागिर समझकर बदतमीजी करने लगते है और कुछ ऊंच-नीच हो जाए तो कहा जाता है कि लड़की को ज़रूरत ही क्या थी देर रात घर से बाहर निकलने की. क्यों भई अगर देश आजाद है तो आज़ाद देश में घर से बाहर कभी भी निकलने हक का सिर्फ लड़कों को ही मिल रखा है और यदि लड़कियां रात में सुरक्षित होकर अपने ही मुहल्ले, शहर और देश में घूम नहीं सकती तो किस मतलब की है ये आज़ादी? सिर्फ भाषण देने के लिए?

अब तो ऐसा लगता है प्रधानमंत्री को 15 अगस्त को आज़ादी का जश्न मनाना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि ये किसी ढकोसले जैसा ही है. आप देश की आधी आबादी को जो आज़ादी से जीने का हक 7 दशक बाद भी नहीं दिला पाए तो फिर किस आजादी का जश्न मनाते हैं?

क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ों से भारत को आजाद करा दिया, मगर हमारे देश की सरकार अब खुद अपने ही देश के लों की गंदी सोच और घटिया मानसिकता से देश को आज़ाद नहीं करा पा रही और जब तक ऐसा नहीं होगा, आज़ादी बेकार की बात ही लगेगी.

वैसे हमारे देश की बेटियों को सिर्फ रात में सड़क पर खुली हवा में घूमने ही मना नहीं है, बल्कि अधिकतर लड़कियों को तो अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने तक की आज़ादी नहीं है, आजतक वो परिवार वालों की पसंद मानने को ही मजबूर है. महिलाओं को अपनी जिंदगी के फैसले लेने की आज़ादी नहीं है. छोटी होती है तो पिता और बड़े होने पर पति को ये अधिकार मिल जाता है. फिर कैसे मान लें कि हम आज़ादा है?

सही मायने में भारत में आज़ादी का जश्न उस दिन मनाना चाहिए जब हमारा देश अपनी बेटियों को इतना सुरक्षित माहौल देने लायक हो जाए कि बेटियां रात में बेखौफ सड़कों पर घूम सके. तब तक ऐसा न हो जश्न पर फुलस्टॉप लगा देना ही बेहतर है, क्योंकि ये जश्न बस खानापूर्ती ही है.

Kanchan Singh

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Kanchan Singh

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