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रूस में था हिंदू धर्म का बोलबाला ! जानिए क्या कहता है एक हज़ार साल पहले का इतिहास !

रूस में रहनेवाले लोग ईसाई धर्म का पालन करते हैं.

लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि आज जिस रूस में ईसाई धर्म का पालन होता है वहां एक समय हिंदू धर्म का ही बोलबाला था.

रूस के एक हज़ार साल पुराना इतिहास कहता है – रूस में हिंदू धर्म का ही बोलबाला था और उससे भी पहले यहां संगठित रुप से वैदिक पद्धति के आधार पर हिंदू धर्म प्रचलन में था.

कैसे हुआ रूस में हिंदू धर्म का पतन ?

कहा जाता है कि जैसे-जैस वैदिक धर्म का पतन होने लगा वैसे-वैसे यहां मनमानी पूजा और पुजारियों का बोलबाला होने लगा.

इस वजह से 10वीं शताब्दी के आखिर में रूस की कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर की यह इच्छा थी कि उनकी रियासत के लोग देवी-देवताओं को छोड़कर किसी एक ईश्वर की पूजा करें.

उस वक्त दो नए धर्म प्रचलित थे एक तो ईसाई धर्म और दूसरा इस्लाम. दोनों धर्मों के बारे में अध्ययन करने के बाद व्लादीमिर ने ईसाई धर्म को स्वीकार करने का फैसला किया और अपनी जनता से भी इस धर्म को अपनाने की अपील की.

हालांकि ईसाई धर्म को अपनाने के बाद भी यहां के लोगों ने अपने प्राचीन देवी-देवताओं की पूजा नहीं छोड़ी.

लेकिन ईसाई धर्म के पादरियों की लगातार अपने धर्म को प्रचार करने की वजह से ईसाई धर्म के आगे धीरे-धीरे रूस में हिंदू धर्म का अस्तित्व खत्म होने लगा.

ईसाई धर्म से पहले रूस में हिंदू धर्म था

कहा जाता है कि प्राचीनकाल में रूस में लोग जिन शक्तियों की आराधना करते थे उन्हें तथाकथित विद्वानों की भाषा में प्रकृति-पूजा कहकर पुकारते हैं.

वे अग्नि, सूर्य, पर्वत, वायु या पवित्र पेड़ों की पूजा किया करते थे, जैसा कि आज भारत में हिन्दू करता है.

उस वक्त रूस में लोगों के सबसे प्रमुख देवता थे – विद्युत देवता या बिजली देवता. आसमान में चमकने वाले इस वज्र-देवता का नाम पेरून था. कोई भी संधि या समझौता करते हुए पेरून देवता की ही कसमें खाई जाती थीं.

इस मामले में कुछ विद्वानों का कहना है कि प्राचीनकाल में रूस के लोगों द्वारा की जाने वाली प्रकृति की पूजा काफी हद तक हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों से मिलती-जुलती थी.

प्राचीनकाल में रूस के और दो देवता हुआ करते थे जिनके नाम थे रोग और स्वारोग. इसके साथ ही उस वक्त सूर्य देवता को होर्स, यारीला और दाझबोग के नाम से जाना जाता था.

एक हज़ार साल पहले रूस में कुछ मशहूर देवियां भी थीं बिरिगिन्या, दीवा, जीवा, लादा, मकोश और मरेना नाम से जाना जाता था.

कई मूर्तियां देते हैं रूस में हिंदू धर्म का प्रमाण

आज भी रूस के प्राचीन धर्म से संबंधित कई ऐसे निशान मिलते हैं, जो इस बात का प्रमाण देते हैं कि रूस का पुराना धर्म हिंदू धर्म से काफी हद तक मिलता है.

रूस में पुरातत्व विभाग की ओर से खुदाई करने पर प्राचीन देवी देवताओं की लकड़ी या पत्थर की बनी मूर्तियां मिल जाती हैं. इनमें से कुछ मूर्तियों में दुर्गा माता की तरह अनेक सिर और अनेक हाथ बने होते हैं.

कुछ साल पहले ही रूस में वोल्गा प्रांत के स्ताराया मायना गांव में विष्णु की मूर्ति मिली थी जिसे 7-10वीं ईसवी सन का बताया गया. इसके अलावा यहां खनन के दौरान प्राचीन सिक्के, पदक, अंगूठियां और शस्त्र भी मिले हैं.

स्ताराया गांव के बारे में कहा जाता है कि यह गांव 1700 साल पहले एक प्राचीन और विशाल शहर हुआ करता था, जहां स्लाव लोगों के आने से पहले शायद भारतीय लोग रहे होंगे.

आमतौर से यह माना जाता है कि ईसाई धर्म करीब 1,000 वर्ष पहले रूस के मौजूदा इलाके में फैला. यह भी उल्लेखनीय है कि रूसी भाषा के करीब 2,000 शब्द संस्कृत मूल के हैं.

गौरतलब है कि रूस में आज भी कई ऐसी ऐतिहासित चीजें देखने को मिल जाती हैं जिनके अध्ययन से यह प्रमाण मिलता है कि आज से 1 हज़ार साल पहले रूस में हिंदू धर्म का ही बोलबाला था.

Anita Ram

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