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हिंदी के महान उपन्यासकार जिनकी कहानियां सोचने पर मजबूर कर देती है

हिंदी है हमवतन है हिन्दोस्तां हमारा

आने वाली 17 सितम्बर को हिंदी दिवस है.

एक देश जहाँ अधिकतर लोग हिंदी बोलते है और जहाँ हिंदी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है. लेकिन सोचने वाली बात है दिन प्रति दिन देश में में हिंदी के हालात बाद से बदतर होते जा रहे है.

35 वर्ष बाद भारत में एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन का आयोजन हो रहा है. आशा है कि इस आयोजन के बाद भी हिंदी को बढ़ावा देने की प्रक्रिया शुरू रहेगी नहीं तो ये सम्मलेन भी हिंदी दिवस की तरह बस एक औपचारिकता रह जायेगा.

आज के समय में हमारे साहित्य और फिल्मों का स्तर  इतना गिर गया है कि अपनी भाषा में ना ढंग की पुस्तकें पढने को मिलती है ना ढंग का सिनेमा.

हमारी आज की पीढ़ी जो अंग्रेजी के लेखकों को बहुत अच्छा और हिंदी लेखकों को दोयम दर्जे का मानती है उन्हें भारत के कुछ हिंदी लेखकों के बारे में पढ़ना चाहिए.

लेकिन समस्या ये है कि हमारी आज की पीढ़ी जानती नहीं है हिंदी के लेखकों और कवियों को जिनकी कहानियां,उपन्यास और कवितायेँ पढ़कर पता चलता है कि हमारा साहित्य भी उच्च कोटि का है.

हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आज हम आपको बताते है हिंदी के कुछ प्रसिद्ध उपन्यासकारों के बारे में जिनके उपन्यास मानवीय मूल्यों, समाज की समस्याओं के साथ साथ मानवीय व्यवहार के बारे में उत्कृष्ट कृतियाँ है.

अमृता प्रीतम

भीष्म साहनी

धर्मवीर भारती

सच्चिदानंद वात्सायन ‘अज्ञेय’

फणीश्वर नाथ ‘रेनू’

श्री लाल शुक्ला

काशीनाथ सिंह

कमलेश्वर

कृष्णा सोबती

यशपाल

मुंशी प्रेमचंद

ये हिंदी के वो महान लेखक है जिनके उपन्यास सबको पढने चाहिए. इन लेखकों के लेखन की सबसे खास बात ये है कि बरसों पहले लिखे इनके उपन्यास और कहानियां तब भी सामयिक थे और आज भी सामयिक है.

आने वाले दिनों में हम आपको हिंदी के महान कहानीकारों और कवियों के बारे में जानकारी देंगे.

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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