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इस जगह डंडा मारकर विवाह के लिए साथी चुनने की प्रथा आपको आश्चर्यचकित कर देगी!

आप ने भारत की अलग अलग संस्कृति और रीती रिवाजों के बारे में सुना होगा लेकिन एक ऐसा रिवाज जिसमे डंडा मारकर रिश्ता जोड़ने की बात सुनकर आपको आश्चर्य होगा.

हम आपको  भारत की इस विचित्र प्रथा के बारे में बताएँगे

राजस्थान के जोधपुर में मारवाड़ प्रान्त  में रिश्ता तय  करने की अजीब  प्रथा चलती है.

जोधपुर, नागौर और बीकानेर में  धींगा गवर नाम का एक उत्सव मनाया जाता है.

इस उत्सव की मान्यता है कि  लड़की के हाथ में रखा डंडा किसी लड़के को लगता  है तो उसका उस लड़के के साथ विवाह होना पक्का माना जाता है.

इसलिए इस  उत्सव में लड़कियां कुंवारे लड़कों को दौड़ दौड़कर डंडा मारती है.

मान्यताओं  अनुसार ईसर और गवर – इसर और गवर एक जोड़े का नाम है – जो  शिव और पार्वती के प्रतीक हैं, जबकि धींगा गवर को ईसर की दूसरी पत्नी के रूप में मान्यता मिली हुई है.

प्राचीन कहानी  अनुसार धींगा गवर मौलिक रूप से एक भीलणी थी, जिसके पति का निधन उसकी यौवनावस्था में ही हो गया था और डंडा मारने की प्रथा में वो ईसर के नाते आ गई थी. इसलिए विधवा धींगा गवर को  ईश्वर की कृपा से पुनः ईसर जैसे पति मिल गए.

धींगा गवर के पूजन में ये भी मान्यता है कि इसी सुहागिनों के साथ साथ कुंवारी कन्याएं और विधवाएं भी कर सकती है.

चूंकि पूजा डंडा मारकर पति का महात्म्य अगले जन्म के लिए कामना करना होता है, इसलिए कुंवारी कन्याएं भी इसी उद्देश्य से और विधवा महिलाएं भी इस प्रार्थना के साथ पूजा करती हैं.

इसका पूजन सुहागिनें अपने इसी जन्म के पति की सुखद दीर्घायु के लिए करती है, जबकि धींगा गवर का पूजन अगले जन्म में उत्तम जीवन साथी मिलने की कामना के साथ किया जाता है.

पुरुष धींगा गवर के दर्शन नहीं करते, क्योंकि प्राचीन समय में ऐसा माना जाता था कि जो भी पुरुष धींगा गवर के दर्शन कर लेता था उसकी मृत्यु हो जाती थी.

ऐसे में धींगा गवर की पूजा करने वाली सुहागिनें अपने हाथ में डंडा ले कर आधी रात के बाद गवर के साथ निकलती है. वे पूरे रास्ते गाना गाती हुई और बेंत लेकर उसे फटकारती हुई चलती.

महिलाएं डंडा इसलिए  फटकारती थीं ताकि पुरुष सावधान हो जाए और गवर के दर्शन करने की बजाय किसी गली, घर या चबूतरी में छिप जाते  थे.  कालांतर में यह मान्यता स्थापित हुई कि जिस युवा पर बेंत (डंडा) की मार पड़ती उसका जल्दी ही विवाह हो जाता.

इसी परंपरा के चलते युवा वर्ग इस मेले का अभिन्न हिस्सा बन गया है

आज भी यह प्रथा बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है.

 

Dr. Sarita Chandra

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