इतिहास

जब फरिश्तों का नाम आया तो कलाम याद आया.

कुछ फरिश्तें को ख़ुदा भी अपने पास ही रखना चाहता हैं.

कलाम उन्ही फ़रिश्तों में से एक थे. भारत के 11वें राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम कल हम सब से दूर किसी दूसरी दुनिया के सफ़र में निकले गए, एक ऐसी दुनिया जो जिन्दगी के बाद शुरू होती हैं. जहाँ लोग जा कर भी हमारे पास ही रह जाते हैं.

उनके बारे में यह सारी बातें लिख कर में उन्हें अंतिम विदाई या ट्रिब्यूट नहीं देना चाहता जो समय और दिन गुजरने के साथ कल शायद हम सब भूल जाये, मैं आपको अलविदा भी नहीं कहना चाहता क्योंकि अलविदा कहने का अहसास किसी को भूलने के लिए मजबूर करता हैं और मैं आप को भूलना नहीं चाहता कलाम.

आप को भूलू भी कैसे और क्यों भूलू, आप गए ही कहाँ हैं? आप का जिस्म गया हैं, वो जिस्म जो इस दुनिया में आजतक किसी का भी सगा नहीं हुआ. आप का जिस्म ज़रूर ख़त्म हो सकता हैं ज़मीदों हो सकता हैं लेकिन आप नहीं कलाम.

वो आप ही थे जिसने मुशरफ जैसे मक्कार को भी यह कहने पर मजबूर कर दिया कि “भारत भाग्यशाली हैं जिसे  आप जैसा वैज्ञानिक और राष्ट्रपति मिला हैं”

2002 की रमज़ान याद हैं न कलाम आप को, जब आप ने इफ्तारी उन नेता और संपन्न लोगों के साथ न कर के ज़रूतमंद बच्चो के साथ की थी ये कह कर कि “यहाँ आने वाले सारे लोग को खाने की कोई कमी नहीं हैं तो इन लोगों पर क्यों खर्च करे” इस पुरे आयोजन के खर्चे के अलावा आपने खुद के वेतन से जकात के रूप में 1 लाख रूपए का सामन  और उन बच्चों को खान-पिने की चीज़े, कम्बल आदि दिए थे.

कलाम साहब 2006 की वो गर्मी तो ज़रूर याद होगी आप को जब पहली बार आपका परिवार आप के राष्ट्रपति बनने के बाद आप से मिलने दिल्ली आया था जिसमे आप के बड़े भाई को मिला कर करीब 52 लोग थे. इन सब को आपने राष्ट्रपति भवन में तो ज़रूर ठहराया था लेकिन उस वक़्त खर्च हुआ 3 लाख 52 हज़ार रूपए आपने हिसाब कर पूरा खर्चा अपने अकाउंट से चेक बना कर राष्ट्रपति भवन भेज दिया था.

कलाम, ये आप की नेकदिली ही थी कि ख़ुदा भी आप की बात सुनने के लिए मजबूर हो जाता था.

अगस्त 15, 2003 का वो दिन जो बारिश से शुरू हुआ था याद आया?

सभी लोग इस बारिश से परेशान थे क्योंकि शाम को  होने वाली चाय पार्टी राष्ट्रपति भवन के बगीचे में होनी थी, जिसमे 3000 मेहमान आने वाले थे. लेकिन बारिश ने पूरी इंतजाम पर सवाल खड़ा कर दिया था. आप उस वक़्त आप अपने भवन पर बैठे थे और अपने सचिव से कहा था कि “कितना बेहतरीन दिन हैं, ठंडी हवा चल रही हैं. चिंता मत करो मैंने ऊपर बात कर ली सब सही हो जायेगा”

और 2 बजे बारिश रुक गयी थी जिससे पूरी पार्टी अच्छे से हुई.

अब इसे क्या कहेंगे कलाम आप ही बताईये कि खुद भगवान् भी आप की कही बात कभी टाल नहीं पाया.

लेकिन कल से आप के जाने के बाद कुछ अजीब लग रहा हैं, जैसे हमारे सर से छत हट गयी हो.

Sagar Shri Gupta

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Sagar Shri Gupta

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