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जगन्नाथ जी हिंदुओं के देवता है तो मजार पर क्यों रूकती है उनकी यात्रा

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा

भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पुरी में शुरू हो चुकी है।

हिंदू धर्म में इस भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का बहुत महत्व है। रथ यात्रा से जुड़ी बहुत सी बातें आपने लोगों के मुंह से सुनी होगी या पढ़ी होगी, लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि जगन्नाथजी का रथ यात्रा के दौरान एक मुसल्म की मजार पर रुकता है। हिंदुओं के देवता आखिर मजार पर क्यों रुकते हैं, क्या है पूरा माजरा, चलिए जानते हैं।

दरअसल, कहा जाता है कि जिस मजार पर रथ रुकता है वो मजार जगन्नाथ जी के मुस्लिम भक्त की है. यह मुस्लिम भगवान जगन्नाथजी का परम भक्त था, लेकिन मुस्लमान होने की वदह से उसे कभी भी मंदिर के अंदर नहीं जाने दिया गया और अपने भगवान के दर्शन किए बिना ही उसकी मौत हो गई, लेकिन मरने से पहले उसने कहा था कि मेरी भक्ति सच्ची है तो प्रभु मेरी मजार पर जरूर आएंगे… और इसकी बात सच साबित हुई.

जानकारी के मुताबिक, यह उस समय की घटना है जब भारत पर मुगलों का शासन था. जगन्नाथ जी के भक्त का नाम था सालबेग जो इस्लाम धर्म को मानता था, उसकी माता हिंदू और पिता मुस्लिम थे. सालबेग मुगल सेना में भर्ती हो गया. एक बार उसके माथे पर गहरी चोट लग गई. हकीमों और वैद्यों से इलाज के बाद भी उसका जख्म ठीक नहीं हो रहा था, इसलिए उसे मुगल सेना से भी निकाल दिया गया. इस वजह से सालबेग परेशान और दुखी रहने लगा, उसे परेशान देखकर उसकी मां ने उसे भगवान जगन्नाथजी की भक्ति करने की सलाह दी.

तभी से वह जगन्नाथजी की पूजा-अर्चना और भक्ति करने लगा एक बार उसने सपना देखा कि जगन्नाथजी खुद उससे मिलने आए हैं और उसे घाव पर लगाने के लिए भभूत (पूजा-हवन के बाद बची हुई राख) देते हैं और सालबेग सपने में ही उस भभूत को अपने माथे पर लगा लेता है. जब सालबेग की नींद खुलती है तब उसे एहसास होता है कि वह तो सपना देख रहा था, लेकिन वह इस बात पर हैरान रह जाता है कि उसके माथे का घाव सचमुच ठीक हो चुका है.

इस घटना के बाद से उनकी भगवान में आस्था और बढ़ गई और वह तुरंत जगन्नाथजी के मंदिर की तरफ उनके दर्शनों के लिए दौड़ पड़ता है, लेकिन मुस्लिम होने के कारण उसे मंदिर के अंदर नहीं जाने दिया गया. ऐसे में वह मंदिर के बाहर बैठकर ही भगवान की भक्ति करने लगा. प्रभु का नाम जपता है और उनके भजन लिखता है. भगवान की भक्ति करते करते सालबेग की मृत्यु हो गई. उसकी मौत के बाद सालबेग की मजार जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर के रास्ते में बनाई गई.

सालबेग की मृत्यु के कुछ महीने बाद जब भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकली तो सालबेग की मजार के पास से रथ आगे ही नहीं बढ़ा. सभी परेशान हो गए, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या किया जाए. तभी किसी ने राजा को भक्त सालबेग के बारे में बताया, तब राजा ने पुरोहितजी से विचार करके सभी से भक्त सालबेग की जयकार करने के लिए कहा. सालबेग के नाम के जयकारे लगाने के बाद जब रथ को खींचने का प्रयास किया गया तो रथ चलने लगा. तभी से हर साल मौसी के घर जाते समय जगन्नाथजी का रथ सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए रोका जाता है.

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा – किसी ने सच कहा है कि भगवान भी सच्चे भक्तों के मुरीद हो जाते हैं, जो दिल से भक्ति करता है भगवान उसे कभी नहीं भूलते.