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जानिए कैसे होता है भारत में राष्ट्रपति का चुनाव !

भारत में राष्ट्रपति का चुनाव

भारत में राष्ट्रपति का चुनाव – देश भर में पिछले कुछ समय से राष्ट्रपति चुनाव की चर्चा जोरों पर है।

सभी पार्टियाँ अपने-अपने उम्मीदवार को लेकर मंथन कर रही है। लेकिन क्या आप जानते है कि भारत में राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है?

अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको बता देते है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राष्ट्रपति कैसे चुने जाते है? 

हमारा देश विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के तौर पर जाना जाता है। भारत में राष्ट्रपति को सबसे पहला व्यक्ति माना जाता है बेहतर शब्दों में कहे तो यह देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है। 5 साल में एक बार भारत में राष्ट्रपति का चुनाव होता है। भारत के राष्ट्रपति चुनाव में सभी राजनैतिक दलों के विजयी उम्मीदवारों को शामिल किया जाता है। भारत में राष्ट्रपति का चुनाव एक इलेक्टोरल कॉलेज करता है। लेकिन इसके सदस्यों का प्रतिनिधित्व अनुपातिक भी होता है। उनका सिंगल वोट ट्रांसफर होता है लेकिन उनकी दूसरी पसंद की भी गिनती होती है।

यानि जनता भारत में राष्ट्रपति का चुनाव सीधे नहीं करती बल्कि उसके वोट से चुने गए प्रतिनिधि जैसे विधायक और सांसद के वोट से होती है।

इस प्रक्रिया को अप्रत्यक्ष निर्वाचन के तौर पर जाना जाता है।

इसमें सभी प्रदेशों के विधानसभा से चुने गए सदस्य और लोकसभा सांसद वोट डालते है। राष्ट्रपति द्वारा संसद में नामित सदस्य और राज्यों की विधान परिषद के सदस्य वोट नहीं डाल सकते। क्योंकि ये लोग जनता द्वारा चुने गए सदस्य नहीं होते है। इस चुनाव में एक खास तरीके से वोटिंग होती है जिसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते है। यानि वोटर एक ही वोट देता है लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में शामिल सभी उम्मीदवारों में से अपनी प्राथमिकता तय करता है।

वोट देने वाले बैलेट पेपर पर अपनी पसंद को पहले, दूसरे तथा तीसरे क्रमानुसार बताना होता है।

यदि पहली पसंद वाले उम्मीदवार के वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो सका तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर कर दिया जाता है। वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट का वेटेज भी अलग-अलग होता है। दो राज्यों के विधायकों के वोटों का वेटेज भी अलग होता है। उनके राज्य की जनसंख्या के हिसाब से वेटेज तय किया जाता है। प्रदेश के विधानसभा सदस्यों की संख्या को भी ध्यान में रखा जाता है। वेटेज निकलने के लिए प्रदेश की जनसंख्या को चुने गए विधायकों की संख्या से बांटा जाता है। इसके बाद जो आंकड़ा सामने आता है वही उस राज्य के एक एक विधायक के वोट का वेटेज होता है।

एक हजार से भाग देने पर अगर शेष पांच सौ से ज्यादा हो तो वेटेज में एक और जोड़ दिया जाता है।

सांसदों के वोट के वेटेज का गणित अलग होता है।

सबसे पहले सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने गए सदस्य के वोटों का वेटेज जोड़ा जाता है। इसके बाद सामूहिक वेटेज का राज्यसभा और लोकसभा से चुने गए सदस्य की कुल संख्या से भाग दिया जाता है। इसके बाद जो नंबर सामने आता है वहीं एक सांसद के वोट का वेटेज होता है। ऐसे में अगर भाग देने पर शेष 0.5 से ज्यादा बचता है तो वेटेज में एक और जोड़ दिया जाता है।

राष्ट्रपति चुनाव में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने से ही जीत तय नहीं होती।

राष्ट्रपति वहीं बनता है जो सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधे से अधिक अंक हासिल करता है। इस चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले को कितने वोट या वेटेज पाना होगा। फ़िलहाल राष्ट्रपति चुनाव के लिए जो इलेक्टोरल कॉलेज है, उसके सदस्यों के वोटों का कुल वेटेज 10,98,880 है। जीत के लिए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को 5,49,442 वोट हासिल करने होंगे, जो उम्मीदवार सबसे पहले यह कोटा हासिल करता है उसकी जीत हो जाती है।

वोटिंग के बाद सबसे पहले सभी मतपत्रों पर दर्ज पहले पसंद की गिनती होती है।

यदि पहली गिनती में ही कोई उम्मीदवार जीत के लिए जरुरी वेटेज को नहीं हासिल करता है तो उस उम्मीदवार को बाहर किया जाता है जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिले थे। लेकिन उसे मिले वोटों से यह देखा जाता है कि उसकी दूसरी पसंद के कितने वोट किस उम्मीदवार को मिले है। इसके बाद दूसरी पसंद के लिए वोट ट्रांसफर होने के बाद सबसे कम वोट वाले उम्मीदवार को एक प्रक्रिया के तहत बाहर किया जाता है। ऐसे में अगर अंतिम दौर में भी किसी उम्मीदवार को जीत के लिए जरुरी अंक नहीं मिलता है। तो बारी-बारी से उम्मीदवार बाहर होते जाते है और फिर अंत में जिस उम्मीदवार के पास सबसे अधिक वोट होते है उसे राष्ट्रपति के लिए चुन लिया जाता है।

और इस तरह से भारत में राष्ट्रपति का चुनाव होता है और भारत को एक नया राष्ट्रपति मिल जाता है।