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यादों के झरोखे में आज भी ताज़ा है बचपन का वो दूरदर्शन वाला संडे !

दूरदर्शन वाला संडे – कल की सुबह का हर बार की तरह मुझे बड़ी ही बेसब्री से इतंज़ार था। वजह तो कुछ खास नहीं थी, हां पर इतंज़ार इसलिए था क्योकि कल संडे है।

हालांकि संडे को कुछ खास करना नहीं होता, हां पर भाग-दौड़ से भरे सप्ताह में संडे राहत का दिन ज़रूर होता है। मुझे लगता है कि आप सब भी मेरी बात से इत्तेफाक रखते होंगे।

हमेशा की तरह संड को देर से उठूंगी, लंच टाइम तक ब्रेकफास्ट होगा और फिर बाकी सारे काम भी डिले होते जाएंगे। रोज़मर्रा के कामों से निपटकर कुछ उन कामों को वक्त दूंगी जो पूरे हफ्ते नहीं हो पाते। बस फिर इसी सब में एक और इतवार निकल जाएगा और ना जाएगा सोमवार, फिर से एक नया हफ्ता पुरानी दिनचर्या के साथ।

असल मायनों में देखा जाए तो संडे तो बचपन में आया करता था, तब का संडे बहुत बड़ा हुआ करता था। काम तो कुछ नहीं करने होते थे पर हां, टीवी पर दूरदर्शन देखने का एक अलग ही मज़ा हुआ करता था। मुझे लगता है कि 90’s का हर बच्चा मेरी इस बात से इत्तेफाक रखेगा।

बचपन के दिनों में संडे का खुमार ही कुछ और हुआ करता था, सुबह-सुबह नहा-धो कर टीवी के सामने बैठ जाना और फिर रंगोली में शुरू में पुराने फिर नए गानों का इतंज़ार करना, ‘जंगल-बुक’

देखने के लिए जिन दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका घर पर आना और फिर चंद्रकांता की कास्टिंग से अंत तक देखना और सीरियल में हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ देना फिर पूरे हफ्ते हमारा सोचते रहना कि आखिर अगले हफ्ते क्या होगा ?

सबसे खास बात, शाम को 4 बजे आने वाली फिल्म का इतंज़ार करना और फिर 3 घंटे टीवी से बिल्कुल चिपक कर फिल्म देखना, मूक-बधिर समाचार में टीवी एंकर के इशारों की नकल करना।

ये सब कुछ ऐसी बातें हैं जो हमारे बचपन के संडे को इतना खास बना देती थी कि उस संडे की यादें आज भी हमारे दिल में ताज़ा हैं।

संडे के इस दूरदर्शन कार्यक्रम के बीच में अगर एन्टीना की वजह से दिक्कत तो छत पर जा कर ठीक करना।

सच में अब वो रविवार नहीं आता, ज़िदंगी की भागदौड़ में कही खो गया है हमारा वो प्यारा संडे, केबल के अनेकों चैनल्स के बीच अब ना तो किसी सीरियल का इतंज़ार रहता है और ना ही किसी शो को ना देख पाने का दुख।

एन्टीना ठीक करने की जगह अब रिमोट पर उंगलिया चलने लगी हैं। यूं तो बहुत कुछ बदल गया है लेकिन यादों में जब भी संडे याद  आता है तो बचपन की गलियों से सुकून भी लौट आता है।

ये था दूरदर्शन वाला संडे – खैर, अब तो बस यही कह सकते हैं कि बचपन वाला वो दूरदर्शन वाला संडे अब नहीं आता।