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इन 5 युवाओं ने वो काम कर दिखाया जिसके बारे में हम सोचते भी नहीं !

सरकारी स्कूल में पढ़ना

सरकारी स्कूल में पढ़ना – हमारे देश में जिसके साथ भी सरकारी शब्द जुड़ जाता है उसकी हालत खस्ता हो जाती है, फिर वो चाहे सरकारी अस्पताल हो, सरकारी कार्यालय हो, सरकारी पार्क हो, सरकारी सड़क हो.

शायद सरकारी होने का मतलब ही हमारे देश में जर्जर व्यवस्था, खस्ताहाल ईमारत आदि हो गया है.

कुछ ऐसा ही सरकारी स्कूल के साथ भी है तभी तो कोई भी पैरेंट्स अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने से कतराते है.

लेकिन जो लोग प्राइवेट स्कूल की फीस नहीं दे पाते है उन्हें तो सरकारी स्कूल में पढ़ना पड़ता है. हालाँकि सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने के लिए हर साल करोड़ों का बजट आता है, लेकिन वो जाता कहा है ये कोई नहीं जानता?

सरकारी स्कूल में पढ़ना

ये थी हमारी एजुकेशन व्यवस्था की एक छोटी सी झलक जो की काफी दयनीय है. लेकिन पांच युवा ऐसे भी है जिन्होंने इस बीमार एजुकेशन व्यवस्था को दुरुस्त करने का बीड़ा उठाया है. जी हाँ मध्यप्रदेश के अभिषेक दुबे, शिवालिका गिल, बसंत शर्मा, ऋषि वत्स और कनिष्क चौहान इन पांच युवाओं ने सरकारी स्कूलों की एजुकेशन व्यवस्था को सुधारने का सराहनीय काम किया है.

दरअसल ये कहानी शुरू होती है आज से तीन साल पहले जब इन लोगों को एक अनाथालय में जाने का मौका मिला, तब इनके मन में उन बच्चों के लिए कुछ करने के बारे में विचार. तब इन लोगों ने डिसाइड किया की हम लोग वक्त निकालकर हफ्ते में कम से कम दो दिन इन बच्चों को पढ़ाने आयेंगे. और इस तरह इन लोगों ने वीकेंड्स पर इन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया.

फिर इन लोगों ने इस मुहिम से और भी लोगों को जोड़ने के बारे में विचार किया और ‘मुस्कान ड्रीम क्रिएटिव फाउंडेशन’ नाम से एक एनजीओ का गठन का लिया.

ये एक तरह का नॉन प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन है, अब सोशल मीडिया के जरिये इन लोगों ने कॉलेज स्टूडेंट्स को जोड़ना शुरू किया. अब ये कॉलेज स्टूडेंट हफ्ते में तीन दिन अनाथालय के बच्चों को पढ़ाने लगे. एक अनाथालय से शुरू हुई ये कहानी अब मध्यप्रदेश के तीन शहरों ग्वालियर, भोपाल और इंदौर में फ़ैल गई है.

अब ग्रुप में 180 वॉलंटियर हो गए है जो हफ्ते में तीन दिन शुक्रवार, शनिवार और रविवार को अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाने जाते है.

इतना ही नहीं इन लोगों ने ग्वालियर के एक सरकारी गर्ल्स स्कूल को गोद लेकर मॉडर्न स्कूल बना दिया है. धीरे-धीरे ये लोग अपने इस प्रोग्राम को भारत के दूसरे राज्यों में भी ले जाने वाले है. और सरकारी स्कूलों को मॉडर्न बनाने वाले है. इन पांच युवाओं ने एक मिशाल पेश की है और वो काम कर दिखाया है जिसके बारे में हम सोचते भी नहीं है.