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मिडिया ” दादरी काण्ड ” की आग को और भड़का रही हैं.

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“तिल का ताड़” कैसे बनाया जाता हैं, इस बात को कोई समझना चाहे तो भारतीय मिडिया द्वारा दी गयी खबर देख ले या पढ़ ले.

आग में घी डालने का ऐसा ही काम आज की मिडिया अभी कुछ दिन पहले हुए “ दादरी काण्ड ” में भी कर रही हैं.

बिसाह्डा गाँव में हुयी कुछ दिन पहले की एक घटना में मिडिया ने जो काम किया हैं, उससे मिडिया की विश्सनीयता पर सवाल उठता हैं कि लोकतंत्र को मजबूत करने वाले चार स्तंभों में से एक कहे जाने वाला यह स्तंभ इतना सम्मान पाने के काबिल हैं भी या नही?

गौ मांस के मामले पर वैसी ही अभी कई दिनों से बहस चल रही हैं और इस बात को लेकर बिसाह्डा गाँव में अभी कुछ दिन पहले मोहम्मद इखलाक को कुछ लोगो ने सिर्फ इसलिए मार दिया क्योकि उसने गौ मांस खाया था. भीड़ ने इखलाक की इस कदर पिटाई की कि कुछ देर बाद अस्पताल ले जाने से पहले ही उसकी मौत हो गयी.

उतेजित भीड़ ने इखलाक के साथ साथ उसके बेटे से भी मार पीट की, जिसकी वजह से वह अभी भी अस्पताल में अपना इलाज़ करा रहा हैं.

इस पूरी घटना के बाद यह गाँव तनाव में हैं.

दरअसल बिसाह्डा गाँव के 80 साल के अभी तक इतिहास में कभी भी कोई मज़हबी उन्माद नहीं हुए हैं. इस गाँव में हिन्दू और मुस्लिम के बीच के समझ और सामंजस्य की हर जगह चर्चा होती हैं, लेकिन इस घटना के बाद मिडिया ने जिस तरह से इस खबर को लोगो तक पहुचाया हैं कि इससे दोनों समुदायों के बीच मनमुटाव बढ़ने की संभावना और बढ़ गयी हैं. मिडिया ने मुहम्मद इखलाक की मौत को इस तरह से पेश किया कि हिन्दु दुनिया की सबसे क्रूर और वहशी कौम हैं. मिडिया द्वारा दिखाई गयी एकतरफा खबरों से यह लग रहा हैं कि हिन्दुओं से बड़े शैतान और कोई नहीं हैं और इस पुरे मामले को एक साम्प्रदायिक रंग दे दिया हैं.

इन बातो की प्रमाणिकता के लिए आईएं आप को कुछ बड़े अखबारों की खबरे पढ़ाते हैं. “नवभारत टाइम्स” की खबर के अनुसार घटना पीड़ित इखलाख ने मारपीट से 15 मिनिट अपने एक हिन्दू दोस्त मनोज को फोन किया था लेकिन मनोज के घटना स्थल तक पहुचने से पहले इखलाख की मौत हो चुकी थी. इसी तरह उस इलाके के एक और अखबार “नयी दुनिया” में भी हिन्दुओं को एक आतंकवादी के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी हैं. मिडिया को जहा इस विषय में यह कोशिश करनी चाहियें कि उस क्षेत्र में शांति बनी रहे वहीँ इसके उल्टे पूरी मिडिया उसे धर्म के रंग में रंगने की कोशिश कर रही हैं.

मिडिया ने गौ मांस खाने के इस मामले में हिन्दुओं को फांसीवादी और बर्बर सम्प्रदाय के रूप में पेश करने की कोशिश की हैं वही ये भी कहा कि हिन्दू अपने बहुसंख्यक होने की बात का फायदा उठा कर अल्पसंख्यक समुदाय पर अत्याचार करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने ने इस गाँव का पूरा सच दिखने की ज़रा भी तकलीफ नहीं की.

बिसाह्डा गाँव में कई सालों से हिन्दू और मुस्लिम साथ रह रहे हैं और मुसलमानों के 50 घरों को हिन्दु हमेशा सहायता करते हैं. इस गाँव में बनी मस्ज़िद के लिए गाँव के हिन्दुओं ने ही मिलकर 2 लाख रूपए दिए थे. गाँव में रहने वाले कई मुस्लिम परिवारों के बेटियों की शादियाँ में मदद की हैं. इतना ही नहीं इस घटना में मारे गए इखलाक के बेटी की शादी  में उनके एक हिन्दू मित्र राजेंद्र सिंह ने बारात का पूरा खर्चा उठाया था.

मीडिया को इखलाक से जुडी ऐसी हर बात की जानकारी मिल गयी जिससे साम्प्रदायिकता बढ़ सके लेकिन ऐसी बातों को लोगों तक पहुचाने की किसी ने कोशिश भी नहीं की.

मिडिया के साथ वहां के प्रशासन ने भी धार्मिक उन्माद फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

जब इखलाक की खबर पुलिस को मिली तो इस पुरे मामले की FIR में हत्या की मुख्य वजह गौ मांस का ज़िक्र भी नहीं किया गया. समाजवादी पार्टी ने इस मामले में अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने से बाज नहीं आई. घटना के दुसरे ही दिन इखलाक के परिवार को अखिलेश सरकार ने 20 लाख रुपया सहायता की घोषणा कर दी लेकिन इसी घटना में गोली से घायल से हुए युवक राहुल यादव की सुध लेना भी ज़रूरी नहीं समझा. सरकार के इस पक्षपाती रवैय्ये से वहाँ का यादव समाज भी नाराज़ हो गया हैं.

मिडिया ने हद तो तब कर दी जब सरकार द्वारा दी गए 20 लाख की सहायता राशि को 45 लाख की बता कर सरकार का गुणगान कर दिया.

अब आप ही बताएं की देश के प्रति,देश में रहने वाले लोगों के प्रति समाज के प्रति प्रशासन और मिडिया के यही कर्तव्य हैं? ये सवाल आप से भी हैं क्योकि आप सब भी खुद को हिन्दू-मुस्लिम के चश्मे से इतर कभी देख भी नही पाते हैं.

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