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रंंडुआ प्रथा जिसमें पुरुष को भाभी के साथ सोने की थी छूट!

रंंडुआ प्रथा

आमतौर पर ‘रंडुआ’ का मतलब होता है वो व्यक्ति जिसकी पत्नी का स्वर्गवास हो चुका हो.

लेकिन हमेशा नहीं. ‘रंडुआ’ शब्द का इस्तेमाल गांव के उन पुरूषों के लिए भी किया जाता है, जिनकी ज्यादा उम्र तक शादी नहीं हो पाती.

पश्चिम उत्तर प्रदेश एक लंबे समय तक गुंडागर्दी का गढ़ रहा है. यहां के लोग खेती बचाने के लिए कुछ भी करने को उतारू रहते थे. क्योंकि इनका जीवन यापन खेती पर ही आधारित होता था. फिर चाहे किसी को धोका देना हो, किसी को घूस देना या फिर चाहे किसी की जान ही क्यों ना लेनी पड़े. यहां तक कि लोग अपनी पत्नियों का बंटवारा करने से भी नहीं चूकते थे.

इसे ही कहा जाता था रंंडुआ प्रथा –

रंंडुआ प्रथा में पत्नी का बंटवारा

पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों पर लोग जमीन बचाने के लिए अपने भाई से अपनी पत्नी का बंटवारा करते थे, जो वर्तमान में चल रहा है या नहीं इस बात की पुष्टि तो नहीं की जा सकती. लेकिन आज से लगभग 20 साल पहले इस तरह लोगों का जीवन यापन हुआ करता था. जमीन को बचाने के लिए एक भाई दूसरे भाई से अपनी बीवी साझा करते थे. मतलब साफ है कि अगर एक भाई ने शादी की तो दूसरा भाई नहीं करता था. इससे ना तो इसकी शादी होगी और ना कोई वारिस  होगा. ऐसे में सारी जायदाद दूसरे भाई की संतान को, उसके परिवार को हासिल हो सके. इस बलिदान के बदले वह भाई अपनी पत्नी को कुंआरे भाई से बांटने में नहीं कतराते थे.

इसके लिए उसे पूरी छूट दी जाती थी कि भाई की पत्नी के साथ वो भी शारीरिक संबंध बना सकते थे.

इसके अलावा अगर एक भाई कुंवारा है और दूसरा भाई शादीशुदा है. ऐसी परिस्थिति में अगर शादीशुदा भाई की मौत हो जाती है, तो रंडुआ भाई अपनी विधवा भाभी के साथ बिना शादी किए शादीशुदा की तरह जिंदगी बिता सकता था. अपनी भाभी के साथ वो हर सुख प्राप्त कर सकता था जो अपनी बीवी से करता.

साल 1999 के एक अध्ययन के अनुसार उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर और बाघपत में ऐसी प्रथा आम बात थी. जिसे या तो द्रौपदी प्रथा या फिर रंंडुआ प्रथा कहा जाता था. गांव के गरीब जाट परिवारों में ऐसी रंंडुआ प्रथा आम बात थी.

एक जाट लीडर के अनुसार ‘रंडुए पुरुष को भाई की पत्नी के साथ संबंध बनाने की छूट देना आम बात है और परिवार इसी अरेंजमेंट के साथ प्यार से रहते हैं.’

कहा जाता है कि जब तक रंडुआ पुरुष परिवार के साथ अच्छे से रहता है, तब तक सब ठीक-ठाक चलता रहता है. लेकिन अगर वो अपनी जमीन किसी दूसरे के नाम करना चाहे तो उसका परिवार उसी का दुश्मन बन जाता है. ऐसा कई बार देखा गया है कि जमीन के लालच में भाई, भाई का दुश्मन बन जाता है. और भाई की हत्या तक कर डालता है. कई बार तो इन रंडुओं को उसका भाई सिर्फ इसलिए मार डालता था कि उसकी सारी जमीन जल्द से जल्द उसके नाम हो जाए. या फिर इसलिए कि कहीं ये अपनी शादी की न सोच बैठे.

1994 के पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार 1 महीने में 65 हत्याएं हुई जिनमें 40 हत्याएं अधेड़ उम्र के बिना शादीशुदा पुरुष के हुए थे. और ये वो समय था, जब पुलिस ने रंडुआ रजिस्टर मेंटेन करना प्रारंभ किया था.

उस वक्त पुलिस के रिकॉर्ड के मुताबिक मेरठ, बागपत और मुजफ्फरनगर में कुल 1500 रंडुए रहते थे. रंडुआ अगर परिवार का छोटा भाई भी होता तो उसे पिता जैसी इज्जत मिलती थी. ऐसे में अगर परिवार के शादीशुदा भाई की मृत्यु हो जाती थी तो उसकी पत्नी पर नैसर्गिक रूप से उसके रंडुए भाई का अधिकार हो जाता था. इस हालत में औरत के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होता और उसे अपने जेठ या देवर के साथ रहना पड़ता था.

गौरतलब है कि गरीबी ने हर किसी को मजबूत कर रखा था.

खेती पर आधारित उनकी जिंदगी पत्नी तक का बंटवारा करने को मजबूर होना पड़ता था.

लेकिन धीरे-धीरे समाज जिस तरह तरक्की कर रहा है और लड़कियां पढ़ – लिख पा रही है. ऐसे में इस तरह की रंंडुआ प्रथा समाज से खत्म होती जा रही है और होनी ही चाहिए. आज के लोग सिर्फ खेती पर आधारित ना होकर दूसरे व्यवसायियों को भी अपना रहे हैं. जिससे हर किसी की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आ रहा है और समाज में हर तरह का विकास हो रहा है.  फिर चाहे आर्थिक विकास हो, शारीरिक विकास हो या फिर मानसिक विकास हो.