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यूपी में कांग्रेस को जिंदा करना राहुल गाँधी के बस की बात नहीं !

यूपी में कांग्रेस

यूपी में कांग्रेस – कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस बार उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के लिए नहीं बल्कि यहां पर पार्टी बचा खुचा अस्तित्व बचाने के लिए मैदान में हैं.

लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जिस तर्ज पर राजनीति कर रहे हैं उसमें वें चाह कर भी लाख कोशिश कर लें लेकिन यूपी में कांग्रेस पार्टी को इस बार भी जिंदा नहीं कर पाएंगे.

इस बार भी यूपी में कांग्रेस पार्टी सपा और बसपा की पिछलग्गू पार्टी बनकर रह जाएगी.

इसके लिए कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी स्वयं ही उत्तरदायी है क्योंकि आज देश में जिस प्रकार के राजनीतिक नेतृत्व की जरूरत है कांग्रेस पार्टी उसे देने में पूरी तरह विफल है.

दरअसल, कांग्रेस पार्टी आज भी अपने को 90 के दशक से पहले के दौर की राजनीति से बाहर नहीं निकाल पा रही है. खासकर उत्तर प्रदेश में तो यह स्पष्ट नजर आ रहा है. राहुल गांधी के पास अभी तक भी मंडल कमंडल की राजनीति का कोई तोड़ नहीं है. कल तक देश की सबसे बड़ी पार्टी मानी जाने वाली कांग्रेस इन दिनों किस कदर संकट के दौर से गुजर रही है, इस बात का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अस्तित्व के संकट से जूझ रही है.

यूपी में कांग्रेस लोकसभा में 415 का आंकड़ा पार करने वाली कांग्रेस पार्टी आज 44 सीटों पर आकर सिमट गई है. 80 लोकसभा सीट वाले उत्तर प्रदेश से इस बार उसके मात्र 2 ही सांसद सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही जीत पाए. दरअसल, मंडल कमंडल के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफी बदलाव आया है. आज प्रदेश का युवा जिस दिशा में सोच रहा है राहुल गांधी युवा होने के बावजूद भी उस ओर नहीं सोच पा रहे हैं.

देश के साथ उत्तर प्रदेश में आज सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार और तुष्टीकरण की राजनीति है. लेकिन राहुल और उनकी कांग्रेस इन दोनों ही मुद्दों को हैंडल नहीं कर पा रही है. क्योंकि जब बात राजनीति का आती है तो वोटबैंक के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने से राहुल गांधी भी परहेज नहीं करते है.

प्रदेश में चूंकि मुस्लिम समुदाय काफी संख्या में है और वह एकतरफा वोटिंग करता है. इसलिए आज भी कांग्रेस को लगता है कि तुष्टीकरण करने से मुस्लिम खुश हो जाएंगे.

यह बात तो सही है कि तुष्टीकरण से मुस्लिम खुश हो जाते हैं लेकिन ऐसा करने के कारण प्रदेश का बड़ा हिंदू मतदाता वर्ग उससे दूर हो जाता है. राम मंदिर आंदोलन के बाद हिंदूओं एक वर्ग का झुकाव जहां भाजपा की ओर हुआ है. वहीं, हिंदुओं में जो दलितों और पिछड़ों का जातीय समीकरण पहले कांग्रेस के पक्ष में रहता था उस पर कंमडल यानी आरक्षण के बाद से मुलायम और मायावती का कब्जा है.

27 साल बाद भी इसको पास लाने के लिए कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं है. इसके अलावा प्रदेश ही नहीं पूरे देश में भ्रष्टाचार जो बहुत बड़ा मुद्दा है उसका भी राहुल गांधी के पास कोई जवाब नहीं है.

राहुल गांधी जनता के सामने सवाल तो खड़ा करते हैं लेकिन प्रदेश की जनता की समस्याओं का उनके पास कोई समाधान नहीं है.

केंद्र पूर दस वर्ष कांग्रेस का शासन रहने के बावजूद भी राहुल गांधी प्रदेश में ऐसा विकास और भ्रष्टाचार को लेकर कोई ऐसा संदेश नहीं दे पाए जिससे वे जनता के सामने खुद को और कांग्रेस को मजबूती पेश कर सके.

यही कारण है कि विगत 10 वर्षों से राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में चुनावी धूल फांकने के बावजूद उत्तर प्रदेश में वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस को आक्सीजन तक नहीं दे पा रहे हैं.