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क्यों चावल नहीं खाता था लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन ! ये जानकर हैरान रह जाएंगे आप

वेलुपिल्लई प्रभाकरन

लिबरेशन आफ तमिल टाइगर यानी लिट्टे के प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरन के बारे जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि चावल नहीं खाता था.

प्रभारकन ने खुद के चावल नहीं खाने के पीछे जो वजह बताई उसको जानकर आप भी सोचने को मजबूर हो जाएंगे.

बात वर्ष 1986 की है. श्रीलंका में तमिलों और सरकार के बीच शांति स्थापित करने के लिए भारत श्रीलंका के बीच बात चल रही थी. राजीव गांधी सरकार ने शांति को स्थायित्व लाने के मकसद से प्रभाकरन को भी बातचीत में शामिल करने पहल की. इसके लिए प्रभाकरन को सुरक्षित भारत लाने के लिए भारत ने श्रीलंका की अनुमति से भारतीय वायुसेना के दो हेलिकॉप्टर जाफना भेजे थे. उसमें भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हरदीप पुरी भी गए थे.

विमान में प्रभाकरन को लेकर भारतीय अधिकरी चेन्नई पहुंचे.

चेन्नई हवाई अड्डे पर प्रभाकरन के उतरने के बाद वहां के वीआईपी लाउंज में भारतीय राजनायिक हरदीप पुरी ने यह सोचकर चिकन करी और चावल का ऑर्डर किया कि ये चीजें प्रभाकरन को बहुत पसंद आएंगी.

लेकिन वेलुपिल्लई प्रभाकरन ने इससे इनकार करते हुए जो जवाब दिया उसको सुनकर वहां मौजूद लोग दंग रह गए. प्रभाकरन ने कहा कि वह चपाती खाएंगे, चावल नहीं क्योंकि चावल खाने से पिस्तौल का ट्रिगर दबाने वाली उंगली पर असर पड़ता है.

गौरतलब हो कि वेलुपिल्लई प्रभाकरन की कमर पर एक बेल्ट लगी होती थी जिससे एक होलस्टर्ड पिस्तौल लटकी होती थी. साथ ही उनके सीने पर धातु का एक कार्ड लगा होता था, जिस पर 001 नंबर लिखा होता था.

आपको बता दें कि दिल्ली पहुंचने पर वेलुपिल्लई प्रभाकरन को अशोक होटल में ठहराया गया था. जहां 25 जुलाई को हरदीप पुरी ने उसे समझौते की शर्तें पढ़कर सुनाईं. वेलुपिल्लई प्रभाकरन हिंदी व अंग्रेजी नहीं जानता था. इसके लिए उसके साथ उसका एक साथी बालासिंघम रहता था. बताया जाता है कि वेलुपिल्लई प्रभाकरन के साथी बालासिंघम ने ही उसे समझौते की शर्त तमिल में अनुवाद कर सुनाई थी.

शर्ते सुनने के बाद प्रभाकरन बिफर गया. प्रभाकरन ने ऐलान किया कि ये शर्तें उसे मान्य नहीं हैं और वह तमिल ईलम यानी श्रीलंका से अलग तमिल राज्य की मांग को नहीं छोड़ सकता है.

प्रभाकरन ने मांग की कि समझौता बातचीत में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमजीआर को भी शामिल किया जाए. कुछ अधिकारी और पार्टी के लोग इसके लिए तैयार नहीं थे लेकिन राजीव गांधी ने उसकी मांग मान ली.

एमजीआर को तुरंत ही दिल्ली बुलवाया गया.

राजीव गांधी ने अपने अफसरों पर दबाव बनाया था कि वेलुपिल्लई प्रभाकरन को समझौते के लिए किसी भी तरह से मनाया जाए. राजीव गांधी का मानना था कि प्रभाकरन जिद्दी जरूर हैं, लेकिन इस समझौते में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है.

क्योंकि वेलुपिल्लई प्रभाकरन और लिट्टे की सहमति के बिना शांति वार्ता का कोई औचित्य नहीं है.

प्रभाकरन के इस दौरे को लेकर कितनी सतर्कता बरती गई इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि और उनके प्रतिनिधिमंडल को किसी पत्रकार से नहीं मिलने तक दिया गया था.