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गरीब नहीं ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट भी मांग रहे हैं भीख

शिक्षित भिखारी

सड़क और चैराहे पर भीख मांगते लोगों को देखकर आपके मन में यही ख्याल आता होगा ये लोग गरीबी और लाचारी के चलते भीख मांगकर गुजर बसर करने को मजबूर हैं.

लेकिन यदि आपको ये पता चलें कि चेहरे पर लाचारी और बेबसी के भाव लिए इन भिखारियों में बड़ी तादाद में ऐसे भिखारी भी हैं जो पढ़े लिखे हैं, तो उस वक्त आपका रिएक्शन क्या होगा?

आप को बता दें एक रिपोर्ट के अनुसार देश में काफी संख्या में भिखारी हैं जो ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और डिप्लोमा होल्डर हैं. कई भिखारी तो ऐसे भी मिल जांएगे जो भीख मांगते समय फर्राटे से अंग्रेजी बोलते हैं.

देश के विभिन्न भागों में जब इन भिखारियों को लेकर सर्वे किए गए तो कई चौकानेवाले वाले आंकड़े सामने आए. करीब 200 भिखारी ऐसे भी मिले जो न केवल शिक्षित भिखारी थे बल्कि उनके पास अच्छी डिग्रियां भी थी. फिर भी वे सभी भीख मांगकर जीवन चला रहे हैं.

आप को बताते चलें कि वर्ष 2011 की जनगणना रिपोर्ट में कोई रोजगार ना करने वाले और उनके शैक्षिक स्तर का आंकड़ा हाल ही में जारी किया गया है. इसमें भिखारियों का जो आधिकारिक आंकड़ा जारी किया है उसको सुनकर आप हैरान रह जाएंगे.

उसके अनुसार देश में कुल 3.72 लाख भिखारी हैं.

जबकि भिखारियों को लेकर काम करनी वाली संस्थाओं के दावे पर यकीन करें तो ये आंकड़ा 4 लाख से भी अधिक है. गौरतलब है कि सरकारी आंकड़े के अनुसार 3.72 लाख भिखारियों में से 21 प्रतिशत ऐसे हैं जो 12वीं तक शिक्षा ली है. इनमें से 3000 ऐसे भी हैं जिनके पास किसी न किसी प्रोफेशनल कोर्स का डिप्लोमा है. जबकि शिक्षित भिखारी जैसे कि ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएटों की संख्या भी कोई कम नहीं हैं.

देश में भिखारियों की समस्या से निपटने के लिए समय समय पर केंद्र और राज्य सरकरों ने प्रयास किए हैं. सरकार ने इन पढ़े-लिखे भिखारियों को मुख्यधारा में शामिल करने की कोशिश भी की. लेकिन इनसे भिक्षावृति छुड़ाने की सरकार की सभी कोशिशें धरी रह गई.

इनमें से कोई भी भिक्षावृति के काम को छोड़कर अपना काम या अन्य काम करने को तैयार ही नहीं है. क्योंकि इन भिखरियों कहना है कि नौकरी या किसी अन्य काम के मुकाबले वो भीख मांग कर ज्यादा पैसा कमा लेते हैं तो फिर वो भीख मांगना क्यों छोड़े. चिंता की बात है कि पढ़े लिखे भिखारियों में भी कोई शर्मनाक भिक्षावृति छोड़कर सम्मानजनक काम नहीं करना चाहता हैं.

वहीं पढ़े लिखे भिखारियों को लेकर एक दूसरी तस्वीर भी पेश की जा रही है.

इनका कहना है कि वे भिखारी अपनी पसंद से नहीं बने बल्कि मजबूरी के चलते इस धंधे में आए हैं, क्योंकि पढ़ने लिखने के बावजूद डिग्री और एजुकेशनल क्वालिफिकेशन के आधार पर भी संतोषजनक नौकरी नहीं मिली तो वे भिखारी बन गए.

शिक्षित भिखारी के इस तर्क को लेकर जानकारों का कहना है कि इस बात में कोई दम नहीं हैं, क्योंकि यह तर्क समझ से परे हैं. ऐसा कौन सा संतोष है जो नौकरी या मजदूरी में न मिलकर भीख मांगने जैसे बेगैरत काम में मिलता है.

वहीं भिक्षावृति में पढ़े लिखे नौजवान लोगों के आने को लेकर कुछ शिक्षाशास्त्रियों का मत अलग है. उनका मानना है कि शिक्षा और रोजगार के बीच सही तालमेल न होने की वजह से ऐसी समस्याएं देखने को मिल रही हैं. जबकि कुछ का मत है कि हमारे समाज में भिक्षावृत्ति को अच्छा नजर से नहीं देखा जाता है. हो सकता है इसलिए ज्यादातर उच्च शिक्षित भिखारी सर्वे के दौरान अपनी शैक्षिक स्थिति के बारे में गलत जानकारी दे रहे हों.

बहराल देखा गया है कि जो लोग भीख मांगते हैं वे शुरूआत में तो मजबूरी में भीख मांगते है लेकिन कुछ समय बाद यह उनकी आदत में शुमार हो जाता है.

इसलिए यदि भारत से भिक्षावृति के अभिशाप को समाप्त करना है और भारत को भिखारी मुक्त बनाना है तो सरकारों को इससे निपटने के लिए ठोस रोजगार परक नीति के साथ सख्ती से पेश आना होगा. अन्यथा भारत को भिखारी मुक्त देश बनाने का सपना केवल सपना ही बनकर रह जाएगा.