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इस तरह की परवरिश आपके बच्चे को सही मायने में सफल इंसान बना सकती है

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आजकल के बच्चे वैसे तो बहुत समझदार होते है.

नए से नया इलेक्ट्रोनिक उपकरण हो या कोई फिल्म या फिर कोई और चटपटी बातें.

आपको ही देखकर लगता होगा कि ये पीढ़ी कुछ जल्दी ही समझदार हो जाती है.

आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में अभिभावक अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते. ध्यान देने के नाम पर वो उनको अच्छे से अच्छे स्कूल में भेजते है उनकी ज़रूरी गैर ज़रूरी ज़रूरतें पूरी करते है और जिंदगी की दौड़ में उनको एक हरफनमौला के रूप में देखना चाहते है.

इस तरह से बच्चे बहुत ज्यादा व्यावहारिक तो हो जाते है पर फिर भी उनमें कुछ कमियां रह जाती है जिसकी वजह से हो सकता है वो अच्छे इंसान बनने से रह जाते है.

आज हम आपको बताते है कि कौनसी ऐसी बातें है जिनको बच्चों को बचपन से ही सीखना चाहिए और उन बातों को प्रोत्साहन देना चाहिये.

अच्छी पुस्तकें

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आज के स्मार्ट फोन के दौर में बच्चा चलना बाद में सीखता है पर कैंडी क्रश खेलना पहले. गेमिंग बुरी नहीं है पर कितने बच्चे ऐसे है जो बचपन से पुस्तकें पढ़ते है? पुस्तकें पढ़ना सबसे अच्छी आदत होती है. वैसे भी ज्ञान एक झटके में तो हासिल नहीं किया जा सकता ना, ज़रा सोचिये अगर आपका बच्चा बचपन से ही अच्छी किताबें बढ़ता है तो बड़ा होकर ना सिर्फ वो एक सफल इंसान बनेगा अपितु वैचारिक रूप से भी वो समृद्ध होगा. जब आपके पास ज्ञान होता है तो आपकी हर जगह इज्ज़त होती है और आपके आत्मविश्वास में भी बढोत्तरी होती है. इसलिए अपने बच्चे में बचपन से स्कूल की किताबों के अलावा और दूसरी किताबें पढने की आदत डालनी चाहिए.

अच्छी फ़िल्में

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फ़िल्में तो लगभग सब बच्चे ही देखते है और अधिकाँश अभिभावक कम उम्र में बच्चों को फिल्मे देखने से रोकते है कि कहीं फ़िल्में देखकर उनके बच्चे कुछ गलत नहीं सीख जाएँ. ये बात अपनी जगह सही है लेकिन एक दायरे में. कुछ फिल्मे ऐसी होती है जो आपकी जिन्दगी बदल सकती है. फ़िल्में बालसुलभ मन  पर बहुत असर डालती है तो कभी आजमाकर देखिये अच्छे विषयों वाली देश विदेश की फ़िल्में. उनसे कितना कुछ आप भी सीखेंगे और आपके बच्चे भी. देश विदेश की फिल्मों से हमें दुनिया और संस्कृति का ज्ञान होता है. जिज्ञासु प्रवृत्ति का विकास होता है, दिमाग खुलता है.

जिज्ञासु बनाना

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अभिभावकों को चाहिए कि बचपन से ही बच्चे में जिज्ञासु प्रवृत्ति का विकास हो. इससे बच्चों की तर्कशक्ति बढती है और दिमाग का भी विकास होता है. बहुत से अभिभावक अक्सर चिढ जाते है जब उनके बच्चे लगातार सवाल करते रहते है. लेकिन उन अभिभावकों को ये समझना चाहिए कि जो बच्चा जितने ज्याद सवाल पूछता है वो उतना ही तेज़ दिमाग होता है. जिज्ञासु प्रवृत्ति की वजह से बच्चे हर प्रश्न का तर्कसंगत उत्तर तलाशने की कोशिश करते है और वो किसी भी बात पर आँख मूँद कर विश्वास नहीं करते. इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों में जिज्ञासु प्रवृत्ति को बढ़ावा दें.

 आज़ादी देना  

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आज़ादी देने का मतलब ये नहीं कि उन्हें बेलगाम छोड़ दिया जाए. आज़ादी देने का मतलब है उन्हें छोटे छोटे निर्णय लेने की आज़ादी देना. उनको अपनी पसंद नापसंद की आज़ादी देना. ऐसा करने से बच्चे आगे जाकर आपसे कुछ नहीं छुपायेंगे. ये एक तथ्य है कि जितना आप बच्चे को रोकेंगे टोकेंगे वो उतना ही विद्रोही स्वाभाव का हो जायेगा या फिर एक दम ही दब्बू रह जायेगा और ये दोनों ही चीज़ें गलत है. अगर आप बच्चे को ज़रूरत के हिसाब से आज़ादी देते है तो उनमें आत्मविश्वास आता है और उनका भरोसा आप पर हमेशा रहता है.

 सपने देखना

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ये एक ऐसी चीज़ है जिसे भारतीय अभिभावक अक्सर अनदेखा कर देते है. चाहे गाँव हो या शहर चाहे कम पढ़े लिखे हो या अनपढ़, चाहे पारंपरिक हो या आधुनिक अधिकतर अभिभावक अपने बच्चे के अजीबोगरीब या लीक से हटकर सपनों को पंख लगने से पहले ही खत्म कर देते है. आज भी कितने अभिभावक है जो अपने बच्चों  को फिल्मो या नाटक में भेजने को तैयार होते है या डॉक्टर इंजिनियर जैसे पारंपरिक कोर्स को छोड़ संगीत या चित्रकला जैसे कोर्स में दाखिला करवाते हो. अभिभावकों के अपने सपने होते है इसका मतलब ये नहीं कि आप अपने बच्चे के सपने का गला घोंट कर खुद के सपने पूरे करो. ऐसा करने से बच्चे अपने ही माता पिता से दूर हो जाते है. एक बार उनके सपनों को सहारा देखकर देखिये कैसी उड़ान भरते है वो और आपका नाम कैसे रोशन करते है.

ये थी कुछ बातें जिन्हें हर अभिभावक को समझना ही नहीं अपनाना चाहिए और अपने बच्चे को इन बातों के लिए बचपन से ही प्रोत्साहित करना चाहिए. ये सब करने से बच्चे ना सिर्फ सफल होंगे अपितु जिंदगी भर आपका सम्मान करेंगे और आपसे हमेशा भावनात्मक रूप से जुड़े रहेंगे.