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अकबर इस वीर योद्धा के नाम से कांपता था !

मेवाड़ के महाराणा प्रताप

मुगल बादशाह अकबर की ताकत के आगे देश के कई राजपूत नतमस्तक हो गए थे और उन्होंने अकबर की अधीनता को स्वीकार कर लिया था.

लेकिन हिंदुस्तान का एक ऐसा राजपूत योद्धा था जो किसी भी कीमत पर अकबर के आगे झुकने को तैयार नहीं था. बल्कि इस योद्धा का नाम सुनते ही अकबर के पसीने छुटने लगते थे.

आखिर कौन था वो वीर योद्धा जिसने अकबर की नींद हराम कर रखी थी.

आइए हम आपको बताते हैं हिंदुस्तान के उस वीर योद्धा के बारे में.

मेवाड़ के महाराणा प्रताप ने हराम कर दी थी अकबर की नींद

सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में मेवाड़ के महाराणा प्रताप एकमात्र ऐसे हिंदू शासक थे. जिन्होंने बादशाह अकबर की नींद हराम कर रखी थी और अपनी आखिरी सांस तक उन्होंने कभी अकबर के सामने हार नहीं मानी.

दूसरे राजपूत शासकों की तरह ही अकबर हर हाल में मेवाड़ के महाराणा प्रताप को अपने अधीन करना चाहता था. इसलिए अकबर ने महाराणा प्रताप को आधे हिंदुस्तान का वारिस बनाने का लालच भी दिया. बावजूद इसके महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से इंकार कर दिया.

हल्दीघाटी के मैदान में हुआ आमना-सामना

आखिरकार वो वक्त आ गया जब बादशाह अकबर की सेना और महाराणा प्रताप का सामना 18 जून सन 1576 में हल्दीघाटी के मैदान में हुआ. जो भारतीय इतिहास में हल्दीघाटी के युद्ध के नाम से जाना जाता है.

आपको बता दें हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे और अकबर के पास 85000 सैनिक. इसके बावजूद मेवाड़ के महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे.

कहा जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और ना ही मेवाड़ के महाराणा प्रताप हारे. लेकिन दोनों के बीच हुआ यह युद्ध काफी विनाशकारी साबित हुआ.

गौरतलब है कि हल्दीघाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी इस मैदान में तलवारें पाई गईं. बताया जाता है कि हल्दी घाटी में आखिरी बार तलवारों का यह जखीरा साल 1985 में मिला था.

मातृभूमि पर जान न्यौछावर करते थे मेवाड़ के महाराणा प्रताप

मेवाड़ के महाराणा प्रताप अपनी मातृभूमि से बेहद प्यार करते थे इसलिए उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक मातृभूमि के नाम कर दी. भारत का ये वीर योद्धा एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट देता था.

– महाराणा प्रताप को बचपन में कीका कहकर पुकारा जाता था. उन्होंने अपने जीवन में कुल 11 शादियां की थी लेकिन ये सभी शादियां राजनैतिक वजहों से हुई थी.

महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो का हुआ करता था जबकि उनकी छाती का कवच 72 किलो का था. उनके भाला, ढाल, कवच और हाथ में तलवार का वजन मिलाकर कुल 208 किलो था.

महाराणा प्रताप की ये सारी चीजें उदयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित हैं जो उनकी वीरगाथा की यादों को आज भी ताजा कर देती हैं.

अपनी मौत से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ करीब 85 फीसदी मेवाड़ फिर से जीत लिया था. इसके लिए उन्होंने प्रण किया था कि जब तक वो मेवाड़ वापस नहीं लेगें तब तक जंगलों में ही रहेंगे, घास की रोटी खाएंगे, जमीन पर सोएंगे और सभी सुखों का त्याग कर देंगे.

हालांकि मेवाड़ के महाराणा प्रताप को अपने अधीन करने की अकबर की हसरत कभी पूरी नहीं हो सकी लेकिन अकबर भी महाराणा प्रताप की वीरता का कायल था. शायद इसलिए महाराणा प्रताप के मृत्यु की खबर पाते ही अकबर रो पड़ा था.

अपने घोड़े चेतक से करते थे बेहद प्यार मेवाड़ के महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप के पास दो घोड़े थे हेतक और चेतक लेकिन उनका सबसे प्रिय घोड़ा चेतक था. महाराणा प्रताप की तरह ही उनका घोड़ा चेतक भी काफी बहादुर था.

कई बार युद्ध के दौरान चेतक के मुँह के आगे हाथी की सूंड लगाई जाती थी ताकि इससे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित किया जा सके.

बताया जाता है जब युद्ध के दौरान मुगल सेना उनके पीछे पड़ी थी तो घायल अवस्था में चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठाकर कई फीट लंबे नाले को पार किया और फिर वीरगति को प्राप्त हो गया.

– महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की याद में एक मंदिर भी बना हुआ है जो चित्तौड़ की हल्दीघाटी में आज भी सुरक्षित है.

महाराणा प्रताप के हाथी की वफादारी बनी मिसाल

चेतक के अलावा महाराणा प्रताप के पास एक हाथी भी था जिसका नाम था रामप्रसाद. कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढ़ाई की थी तब उसने दो चीज़ों की बंदी बनाने की मांग की थी. एक तो खुद महाराणा प्रताप और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद.

महाराणा प्रताप के घोड़े की तरह ही उनका हाथी रामप्रसाद भी काफी समझदार और ताकतवर था. तभी तो हल्दीघाटी की लड़ाई में रामप्रसाद ने अकेले ही 13 हाथियों को मार गिराया था.

रामप्रसाद को पकड़ने के लिए अकबर के सैनिकों ने 7 बड़े हाथियों का एक चक्रव्यूह बनाया और उनपर 14 महावतों को बिठाया तब जाकर उसे बंदी बना सके.

बंदी बनाए जाने के बाद भी रामप्रसाद ने अपनी स्वामीभक्ति का परिचय देते हुए लगातार 18 दिनों तक मुगलों का एक भी दाना नहीं खाया और ना ही एक बूंद पानी ही पिया और 18 दिनों बाद आखिरकार रामप्रसाद ने दम तोड़ दिया.

बहरहाल एक ओर जहां कई राजपूतों ने अकबर की अधीनता को स्वीकार कर लिया था वहीं महाराणा प्रताप की वीरता के आगे खुद अकबर नतमस्तक हो गया. शायद इसलिए आज भी इतिहास के पन्नों पर जब भी महाराणा प्रताप की वीरता का जिक्र होता है उसे जानकर हर हिंदुस्तानी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है.